Harish Raja   (Fire inside)
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Joined 14 August 2020


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Joined 14 August 2020
4 MAY AT 11:15

पहले से ये तय हो कि किससे मिलना है
तो मक़सद आसान होते हैं !

अमूमन हर आदमी के वरना सार्वजनिक
निजी और गुप्त, जीवन के प्रकार होते हैं ।।

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3 MAY AT 10:23

दी है अगर जान तो जीने का
अरमान भी वही देगा !

होंगे गर रास्ते कठिन तो चलने की
तौफ़ीक भी वही देगा !

बस एक अक्ल ही तुझे तेरी
लानी है इस्तेमाल में !

बाकी का सारा साज- ओ -सामान
भी वही देगा ।।

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22 APR AT 21:28

जब देखा था, तब कुछ और था
अब जो देख रहे है वो कुछ और है !

वो सदाकत का, पाकीज़गी का दौर था
ये शैतानियत का दौर है !

वो एक ही छत, एक ही आंगन, एक ही
रसोई, साथ सब के मिलकर, रहने का दौर था !

आज एक होकर भी, सारे हैं अलग अलग
ख़ुदा जाने किस ओर का, ये दौर है ।।

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21 APR AT 13:06

रिश्तों से नातों से, प्यार से, मोहब्बत से तो
अच्छी भली मौत है !

धन से, दौलत से, शोहरत से, नाम से इज़्ज़त से
भी अच्छी मौत है !

हो गया नाम, कमा ली दौलत, बंगला और गाड़ी
उसके बाद क्या ?

साली कोई भी चीज़ तो देती नहीं है पुर- सुकून
गर देती है, तो बस वो मौत है ।।

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21 APR AT 12:04

कोई पास चाहिए हो हमेशा तो उससे
थोड़ा दूर ही रहना चाहिए !

जो चाहिए गुहार उसकी, ना इससे,
ना उससे, ना किसी से, लगाना चाहिए !

मिला ही कब है, मांगने पर कुछ किसी को
मांगी हुई शय पर एतबार करना भी नहीं चाहिए !

दूर से ही होती है, सभी चीज़ें अच्छी, हों अज़ीज़
तब भी, नज़दीक बहुत नहीं जाना चाहिए ।।


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18 APR AT 9:21

कोई ख़ुद भी थाह नहीं पा सकता उसे
कितना प्यार हासिल है किसी से !

ज़माना फ़िर क्या ही समझ पाएगा
कोई कितना प्यार करता है किसी से !

पूछोगे तो " इतना " उतना " या बहुत ज्यादा
कुछ यूं ही जवाब मिलेगा हर किसी से !

हक़ीक़त उसकी रूह ही जानती होती है
वो कितना प्यार कर रहा होता है किसी से ।।

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10 APR AT 10:32

अच्छी थी जब तलक के ख़्वाब
थी जिंदगी !

तब्दील क्या हुई हक़ीक़त में
रास ना आई जिंदगी ।।

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10 APR AT 10:04

गुंजाइश, तकरार की बनी रहती है !

मिलता नहीं जब तलक, मन से मन
मनमुटाव की संभावना बनी रहती है ।।

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6 APR AT 12:50

गली गली, गांव शहर जब, रावण ही रावण
नज़र आएं, ऐसे में फिर दोबारा, राम काहे को आएं !

आ भी जाएं ओढ़ मुखौटा तब भी निस्वार्थ भावना
मर्यादा पुरुषोत्तम सी, कहां से लाएं !

कौन बनें हनुमान जैसा संकट मोचन, कौन बनाए सेतु
सीता खुद ही जब हंसीखुशी, रावण के संग जाएं !

कहकर यूं के उजड़ गई है लंका मर गया है
रावण, मन को अपने बहलाएं !

करें जो मंथन, आप ही अपना अंत में
खुद को, रावण सा ही पाएं ।।

मंदिर ही मंदिर हैं बस रामजी के
जनमानस में, राम कहीं नजर ना आएं ।।

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6 APR AT 11:45

पका भी नहीं था पेड़ पे फल अभी और
ख़लबली फ़साद की जड़ में मची है !

कौन रह पाया है पेड़ पर तमाम उम्र
किसकी आबरू है जो बची है !

गर्म ही रहा करता है बाज़ार ख़रीद फरोख्त
और हथियाने, बरगलाने का हमेशा !

कोई किस्म नहीं ऐसी जो कल बची थी
आज भी बची है !

नज़र पड़ते ही कवायतें हो जाती हैं शुरु, खरीदा जाए
या बलात हासिल किया जाए, होड़ इसीकी बस मची है !





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