Harish Raja   (Fire inside)
802 Followers · 1.1k Following

read more
Joined 14 August 2020


read more
Joined 14 August 2020
2 HOURS AGO

क्या हुआ जो दुश्वारियां हैं हज़ार, और
अनजानी, अंधेरी डगर है !

साथ हो गर, जोश- ओ- जुनून और
हौसला हमसफ़र है !

ढूंढ ही लेता है ज़िन्दगी, मौत के ठिकानों में
कहते उसी को बशर हैं ।।

-


2 HOURS AGO

शोरगुल से होता नहीं कुछ हासिल
देख लिया है हमने !

अब तो बस तन्हाई अच्छी लगती है
सन्नाटा अच्छा लगता है ।।

-


20 HOURS AGO

दुनियादार कहते हैं, बंद रखो मुठ्ठी
मुंह न खोलो !

झूठ से जब तलक, चलता रहे काम,
झूठ ही बोलो ।।

-


22 HOURS AGO

अच्छे, ऊंचे और समृद्ध खानदान में
पैदा होना ज़रूरी है ।।

( मजाकिया लगता है, किन्तु कटु सत्य है )

🥱🤪

-


YESTERDAY AT 9:08

रास नहीं आती किसी को
इन दिनों !

घर में नहीं खाने और अम्मा चली भुनाने
का आलम है इन दिनों !

सायकिल रखने की जगह नहीं और
कार खड़ी चाहिए सभी को इन दिनों !

स्वदेशी सब भूल गए हैं, पीज़ा, बर्गर, पास्ता मोमोज,
चाहिए इन दिनों ।।

-


27 APR AT 13:51

एक तरफ़ वो नई किताबों की खुशबुएं और
वो नए कंपास की उत्तेजना एक तरफ़ !

वो नटराज की पैनसिल, वो खुशबूदार
रबर एक तरफ़ तो वो नया स्कूल बस्ता एक तरफ़ !

बैंच पर खड़ा होने की सजा एक तरफ़
स्कूल की वो यादें एक तरफ़ ।।

-


27 APR AT 8:39

कुछ और नहीं, बस इश्क़ ही इश्क़,
भरा पड़ा है !

कहते हैं कि, ख़ून है उसमें !
हमारे तो ख़ून में ही इश्क़ भरा है !

आते रहें तूफ़ान या कयामत हमें
उससे क्या ?

हमें तो फ़िक्र है केवल इश्क़ की, हमें नहीं निसबत,
कौन ज़िन्दा है कौन मरा पड़ा है ।।

🥱🤪🥱🤪

-


27 APR AT 8:28

बारंबार हार से, मत हो हताश ;
कुछ न कुछ, फिर से करो प्रयास !

पत्थर पर निरंतर पड़ता पानी भी इक
रोज़ कर देता है, उसमें सुराख़ !

होगी अवश्य जीत एक रोज़
करते रहो कोशिश, करते रहो प्रयास ।।

-


26 APR AT 17:37

कपड़ों से तन ढंका जाता था, सम्मान था संस्कृति
का, अमल उस पर किया जाता था !

अदब से पेश आया जाता था सभी से, मान
सभी की, बातों का रखा जाता था !

एक दौर ऐसा भी था, के सारे इंसान रहते थे
जिसमें, दौर ए इफ़्फ़त कहा जाता था ।।

-


26 APR AT 16:06

तमाम उम्र, नहीं भूले जाते हैं
बचपन के वो दिन !

राजा हो या रंक सभी के, एक ही से
जाते हैं, बचपन के वो दिन !

दूध से उजले निकलते थे, धूल-मिट्टी
से सने घर आते थे !

रोज़ पिटते थे, पिटकर आते थे, खाते थे
फिर सपनों में सो जाते थे !

फूटते थे फिर पंख सभी के सब अपनी-अपनी
मंजिल को उड़ जाते थे !

कहीं भी रहे कोई, चाहे भूल जाए सबकुछ
नहीं भुलाए जातें हैं, बचपन के वो दिन ।।

-


Fetching Harish Raja Quotes