चलते राह मे
कितने पथ मिले
कितने ही पथिक मिले
कुछ से कुछ जान हुई
कुछ हमेशा के लिए बस गए
आत्म में...-
शोकग्रस्त मस्तिष्क झुका
प्रार्थनाए केवल रही
निकलता प्राण,
सम्बन्ध टूटता,
वो आत्मा नही रही......!-
मै बिंदु सा या संसार सिमट गया बिंदु में
कि बिन्दु के आगे देखना हो जाता दूभर!
कभी दिमाग,सिमट सा जाता बिंदु तक!
कभी मन बेराह हो जाता संसार तक......।
-हरीश-
कितनी अच्छी बात है न..
ज्ञान विभेद नहीं करता कि
किसके दिमाग मे जाना है।
पुस्तकें यह नहीं कहती कि
किसके पास जाना है।.....-
किसी ने पूँछा, -:
क्या हो साहब....
मैंने कहा -:
गरीबी का "अमीर" हूँ।।-
हम और आप कितने अच्छे थे,
वो खपरैल भी कितने अच्छे थे।
थोड़ा सा समय क्या बीता,
वो खपरैल भी पक्के हो गए।।
read the caption,,,,,,-
कब से सोच रहा था, किस तरफ जाऊँ मैं,
जब तुम्हें देखा तो, चलने का रास्ता मिल गया।।-
चीख रही थी वो,
चित्कार रही थी।
मैने सुना नही,
मैने सुना नहीं वो मुझे पुकार रही थी।।
बोल नहीं सकती थी,
बोल नहीं सकती थी पर वो किलकार रही थी।
मत मारो,
मुझे मत मारो यही चित्कार रही थी।।
मुझे भी जीना है.......,....जीने दो!,,,
शायद, यही कहकर वो पुकार रही थी,चित्कार रही थी!!
-