Haripriya Dubey   (हरिप्रिया दुबे)
307 Followers · 92 Following

read more
Joined 17 May 2020


read more
Joined 17 May 2020
8 JUN 2021 AT 1:07

विनम्रता विस्तार व्यक्तित्व का,संकुचित करता अभिमान।
परिवर्तन है कला काल की,अस्तित्व का अपेक्षित ज्ञान।

-


7 JUN 2021 AT 23:55

लिखा जिसमें मनोभावों को,मनभावन वो लेख नहीं।
भावों और शब्दों की मैत्री हो,ऐसे अवसर अनेक नहीं।
कुछ लिखना है उद्गार,लेकिन व्यापक हो वो लेख नहीं।
और सार लिख सकूं सरिता का,ऐसा शब्द-विवेक नहीं।

-


5 JUN 2021 AT 0:53

यादों के पन्नों पर, सिमटी हुई ये स्याही।
समय के सितम की,दे रही मौन गवाही।
कभी सँवारी गई थी,सुनहरे सपनों से।
आज चौराहे पर,लूटती राहगीरों की वाह-वाही।

-


3 JUN 2021 AT 0:38

भाव सौंदर्य, शब्द श्रृंगार।
वर्णित विवेचन योग्य विचार।
अर्थ गहन,अल्प शब्द-विस्तार।
अगम्य गंतव्य,लेखनी पतवार।
प्रेरक पंक्ति,अभिप्रेरणा का प्रसार।
गर्व हिंदी, मातृभाषा का आभार।
संक्षिप्त में ,मेरी रचना का सार।

-


28 MAY 2021 AT 21:30

जीर्ण पंथ, पर पग नवीन।
जमघट तट पर, विकल मीन।
जब बाध्य विहग हो बंधने को,
उद्वेलित साहस,निडर दीन।

-


21 APR 2021 AT 15:09

जीवन नभ राम का,
अनंत अगणित अध्याय।
नाम विहग राम का,
निःसहायों का सहाय।
नारायण का नर जन्म,
पथ प्रदर्शक हम पथिकों का।
कंटक मध्य कुसुम सम जीवन,
आत्मबल है अधिकों का।
हरि हर्षित थे संघर्ष में,
संघर्ष मानव जीवन का पर्याय।
जीवन नभ राम का, .......
धर्म योद्धा कर्म योद्धा,
आदर्श त्रेता का कण-कण।
यदि राम चरित्र अनुसरण करें,
सुगन्धित होगा जीवन-रण।
विचलित न होना पथ पर,
राम करेंगे न्याय।
जीवन नभ है राम का,........

-


28 FEB 2021 AT 18:55

वो स्नेहशील सुमन,
मृदु साहसी मन।
निस्वार्थ कर्म से,कुटुंब सज्जित।
कृतज्ञता नहीं,समानता अपेक्षित।
जिस धरती माँ पर, स्त्री पूजित।
स्त्री-स्वतंत्रता,क्या केवल कल्पित!
बेड़ी सम बाधक,बन न जाएं कंगन।
मिलें प्रतिभाओं को,स्वच्छंद गगन।
वो स्नेहशील सुमन,मृदु साहसी मन।
शक्ति वह स्वयं है,
फिर सशक्तिकरण की क्यों बात आई!
जब विपदाओं में घिरा समाज,
स्त्री-शक्ति ही साथ आई।
गुणों से गुंजित,होता हर आँगन।
फिर क्यों? स्वप्नों का दमन!
वो स्नेहशील सुमन,मृदु साहसी मन।

-


30 JAN 2021 AT 23:14

जीवन-रण में खड़े नहीं, क्या तृप्ति संसार में।
यदि समर में लड़े नहीं, क्या सुख भव-पार में।
रात-दिवा के अनुभव हित में,हितकारी क्षणिक क्षति।
संघर्ष संकल्प से बड़े नहीं,क्या प्रभाव बूंद का द्रुतगामी धार में।

-


1 JAN 2021 AT 11:51

किसी आत्मा को दुख देकर,
लोग चले परमात्मा से दुआ करने।
चार दीवारों में बैठे क्या चार दिन!
लोग लगे कैदी समझने।
अपनों को पीछे खींच कर,
लोग चले तरक्की का पिटारा भरने।
डर एक मौत का दिखा कर,
लोग लगे भेजने मुर्दों को मरने।
ऐ खुदा!ये तेरी दुनिया,
कुछ लोगों को दुनिया समझकर,
लगे दुनिया से बिछड़ने।

-


8 DEC 2020 AT 20:34

खंडित विश्वास होता, व्यर्थ अथक प्रयास जब।
विफलता का बीज बोता,निराशा का वास जब।

यदि हो रहा है लक्ष्य ओझल।
अनवरत धूमिल पथ पर चल।
बनें विहग का व्योम यह थल।
हो विपदाओं के वार विफल।
उत्साह का उपहास होता,
डिगे विजय-विश्वास जब।।

निर्बल ना हो यह आत्म-बल।
अडिगता डिगे ना एक पल।
विस्मृत कर अभिलाषित फल।
साहसी! संघर्ष पथ पर चल।
राहों का अभ्यास होता,
हो अथक प्रयास जब।
निराशा का नाश होता,
हो प्रबल आत्म-विश्वास जब।।

-


Fetching Haripriya Dubey Quotes