haresingh Harry Panwar   (Haresingh Harry Panwar)
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Joined 1 July 2020


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Joined 1 July 2020
5 JUL 2021 AT 14:39

हँसी आती है इनकी हरकतों पर, जो बिना बात के इतना गुमान रहा,
ये दुनिया मासूम बनि फिरती है, में अकेला इतना बदनाम रहा।
हर जमाने को इतनी समझ है आखिर कौन है जिसका ज़िंदा नाम रहा।

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5 JUL 2021 AT 14:29

आज ख़ुश हु अपनी मौजूदगी में ,मेरा मिजाज अब बदल रहा,
पहले करता था परायो से मशवरा ज़िन्दगी का,अब हु की संभल रहा।
कोई समझाईश न दी लोगो ने कभी, जो दी थी वो अब है अखर रहा।
वक़्त क्या है कोन जानता है, बिता वक़्त मेरा जो मीठा जहर रहा।

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3 JUL 2021 AT 15:34

उलझने कई है, रास्ते कई है,
मैं उलझ जाऊं ज़िन्दगी तो सुलझने कई है।
तू चलता रह चाल ए मुसाफ़िर
सफर कई है, तो मंजिले कई है।

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3 JUL 2021 AT 8:54

कोई नगमे सुनाओ जिंदगी के, जमाने की आवाज ने बहरा कर दिया मुझे।
मै खुद को तलाशने निकला हु ज़िन्दगी, में मिला तो खुद ने पराया कर दिया मुझे।

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28 JUN 2021 AT 8:44

में निक्कल पड़ा हु अपनी राह, न है अब कोई चाह,
में खुद को खुद से ढूंढ लूंगा,न गैरो की कभी सुन लूंगा।

अब अपना मुकाम बनाना है, खुद को खुद से ही हराना है,
कैसे जीतूंगा ये अपनी जंग, अपनी नजरो को दिखाना है।

वक़्त नही है अब मेरे पास, अपनी किस्मत बनाना है,
बहोत हो गयी दुनिया की, अब खुद हुकूमत चलना है।

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27 JUN 2021 AT 11:02

मुकम्मल गमो की अब वो बरसात न रही, बिते हुए सफर की अब वो रात न रही।
गम को गुम करते करते खुद ही गुम हो गए ,फिर करु सफर की शुरुआत अब वो बात न रही।

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26 JUN 2021 AT 17:33

कोई कह दे उनसे जो मुझपे सवाल करते है,
बेमतलब का मुझसे बवाल करते है,
में उनकी समझ से कही दूर जा कर बैठा हु, जो मुझसे मिलने का मलाल करते है

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25 JUN 2021 AT 17:40

कोई खाक सोचता है मेरे बारे, कोई बेहिसाब सोचता है,
ये ज़िन्दगी भर के मसले है जनाब, एक मे हु जो पूरी रात सोचता है।

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16 JUN 2021 AT 23:11

दर बदर की उलझन बची, थोड़ी शाम तो थोड़ी सुबह बची।
न हिस्से में मेरे खुशियां आयी न मुक्कमल मोहब्बत बची।
पूरी उम्र तो जिम्मेदारियां ले गयी ज़िन्दगी, अब न जिंदगी बची न उम्र बची।

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14 JUN 2021 AT 18:19

वो मुझसे झूठ पे झूठ बोलता रहा, में हा में हा मिलाता रहा।
में जान के अनदेखा करता रहा, वो बेशर्मी से जहर पिलाता रहा।
इस इश्क़ में बश पे मेरा बश न रहा, में जिंदगी को तरसता रहा, वो कई मौतें मेरी गिनाता रहा।

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