"कोई मंजिल नही जंचती, सफर अच्छा नही लगता
अगर घर लौट भी जाऊँ तो घर अच्छा नही लगता
करूँ कुछ भी मैं अब, दुनिया को सब अच्छा ही लगता हैं
मुझे कुछ भी तुम्हारे बिन, मगर अच्छा नही लगता"-
मोहब्बत अपनी किस्मत में नहीं थी।
इबादत से गुजारा कर रहे है हम।।
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सामने था, मगर कहीं खो गया।
हाथों में हाथ लिए, किसी ओर का हो गया।
कल तक था, जो चेहरा मेरा।
देखते ही देखते, आज अजनबी हो गया।।-
कुछ यूँ बीती हैं सन्नाटों में मेरी रातें।
मैं अकेले ही सुनता रहा अपनी बातें।।
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तुम्हारी मुहब्बत की कैद में।
तुम्हारे हुक्म का गुलाम हूँ।।
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दिखा दी औकात, मोह्बत का रिश्ता तोड़कर।
जा छोड़ दिया, तुझे लड़की समझकर।।
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तूने आज भी, ना समझा मुझे।
इन आँखो में, प्यार ना दिखा तुझे।
मैं खुद को तेरे लिए, जला तो सकता हूँ।
लेकिन तुझे तो, देखना फिर भी नही उसे।।
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दोस्तों महफ़िल में आया हूँ, दिल थामकर।
अभी नशे में हूँ, ओर एक पैक साथ लाया हूँ बनाकर।
वो किस कदर बेवफा थी, मैं सब बताऊँगा।
बस नशा उतरने से पहले, एक पैक ओर पिला देना लाकर।।
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वो आज भी, रूठा सा रहता हैं मेरे से ।
उसे कैसे बताऊ, कि मौत अब दूर नही मेरे से।
कम्बक्त इन बादलो को, कोई तो जाकर कह दो।
की बरसात करनी हो, तो आकर आँशुए ले जाए मेरे से।।-
अजनबी सा बनकर आया था, तेरे मोह्बत भरे शहर में मैं।
इश्क की ऐसी हवाए चली, की बदनाम होकर भी मशहूर हो गया मैं।
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