" हर किसी की जरूरत पर नंगे पांव पहुंचे हम,
हमारी बारी पर सबके यहा बहुत बारिश हुई !!”
"साहिर लुधियानवी"-
सोता रहा मैं दिन भर एक उम्दा दिन की तलाश में
बाद में इल्म हुआ कि वो साल का अखरी दिन था-
अब क्या ही कहें तुम्हारे गुरुर ऐ हुस्न को
तुम्हारी हर एक खता हमें जायज लगती है-
लड़ाई, झगड़े और बहस कभी मुतासिर न हुए हम इनसे
मगर हिज्र से राबता मुसलसल बना के रखा हमने हमेशा-
आज कल आदतें बदल लीं हैं मैंने
जीने के तौर तरीके भी अपनाने लगा हूं
और अब खुद की इबादत करता हूं फकत मैं
अब खुद से ही दुआएं फरमाने लगा हूं-
आज की बरसात का मजा कुछ इस तरह से लिया मैंने
सिगरेट की डिब्बी खरीदी और फिर दोस्त को बुला लिया मैंने-
जब हुआ दीदार जो तेरी इस मुस्कुराहट का
तो इल्म हुआ बचपन हमारा भी कमाल का था-
हां माना की बाल अच्छे होगें तुम्हारे
मगर जुल्फें हमारी भी कमाल हैं अभी-
it's like once you've been hurt,
you are too scared to get
attached again.
like you have this fear that
every person you start to
like is going to break your heart💔
And nothing else behind this....tqs💞-