तु यूं ही धडकता रहे ए दिल मेरे,
मेरी सासों की डोर जो तुझसे है।
कविराज
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हुरों की आस मे यू जन्नत की तलाश ना कर।
तू खुद को खुद की नजरों में बदमाश ना कर।
कविराज
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के बुलबुले इसकी मराठा, हिंदी,सूफी है।
एक है हम ये बताने इक तिरंगा काफी है।
कविराज
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वहीं शख्स मेरे ख़्वाब में रोज रोज आता है।
वो बेवफा मेरे ज़हन से क्यू नही जाता है।
होते तो बहुत है दिलकश नजारे दुनिया में,
एक भी मगर क्यू उसके जैसा नहीं होता है।
दर्द हद से ज्यादा हर रोज सहेता है दिल,
कंबख्त जिन्होंने टोडा है उनके लिए रोता है।
मतलबोंके शहर बहुत पड़े हैं इस जहां में,
अपनों का मगर इक गांव भी नहीं मिलता है।
सोने भी दो अभी इस दिल को कविराज,
ए दिवाना रात होने पर कहा सोता है।...
कविराज-
ए कुडादान है उठा कर फेंक दो कहीं।
कहीं हम भी इसमें बर्बाद ना हो कहीं।
कविराज-
आंसू के दो बूंद भी सैलाब लाते।
हम नही होते गर दोस्त ना होते।
कविराज-
लाख तेरे निशाणे पर सटीक हूं।
मगर ए मेरे दुश्मन मैं ठीक हूं।
कविराज
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संभलकर रहना अपनों से भी कविराज,
पीठ पिछे खंजर भौंकने वाले सिर्फ दुश्मन ही नहीं होते।
कविराज-
गुलाबों के घर में ऐसे कांटे क्यू है।
हर शख्स को खुदा ने दर्द बांटे क्यू है।
अगर दिल मंदिर है खुदा का कायम,
उसी पे फिर जानलेवा चोटें क्यू है।
उसे मालूम है के बस्तियां उजड़ जाती है,
तो फिर से ये तुफान लौटे क्यू है।
शरीफ़ बनता फिरता है हर कोई दुनिया में,
हर शहर में फिर तवायफों के कोटे क्यू है।
बर्फ से पिघल रहे है सुकून के पल कविराज,
दर्दो गम मगर पहाड़ों से मोटे क्यू है।
कविराज-
गर्विष्ठ मुजोर इथे, झाले मातीमोल...
किती वादळांचा इथे, ढासळला तोल...
कविराज-