" प्रकृति से सीखो " आज सुबह जब सूर्य की किरणों ने मेरा घर दमकाया तो ज्ञात हुआ कि बड़कपन इसी को कहते हैं, ना ज़ात ना धर्म ना ग़रीबी ना ज्ञान, कुछ भी तो नहीं पूछा मुझ से, काश हम भी ऐसे बन जायें ! हफ़ीज़ बिन अज़ीज़
90% लोगों के बाप पहले मर जाते में , क्यों ? इस लिए कि घर की 90% ज़िम्मेदारी बाप पर होती है!और अपनी ज़िम्मेदारियों को निभाते निभाते एक दिन वह इस बोझ में दब जाता है, और उसके नाम में श्री की जगह स्वर्गीय जुड जाता है!इस लिए अपने बाप की क़द्र उनकी ज़िन्दगी में करो,मरने के बाद उनके नाम से किये गये पुण्य से उनके वह ज़ख़्म नहीं भरेंगे जो तुम ने अपनी ज़बान से दिये होंगे, याद रखो कि तुम भी उसी मंज़िल की तरफ़ धीरे धीरे बढ़ रहे हो,और जो जैसा करता है वैसा ही भरता है! हफ़ीज़ बिन अज़ीज़
زمانے والے اٹھے کب , گئے , پتہ ہی نہیں میں منہمک تھا سنانے میں داستاں اپنی حفیظ بن عزیز ज़मानें वाले उठे कब , गये , पता ही नहीं मैं मुनहमिक था सुनाने में दासतां अपनी हफ़ीज़ बिन अज़ीज़ (मुनहमिक = लीन,व्यस्त,Engrossed)
محنت ، لگن ، خلوص ، مروّت و مامتا لکھی ہیں ماں کے چہرہ پر قرآں کی آیتیں بوسہ لیا جو ماں کی جبیں کا تو یہ لگا میرے لبوں سے چھو گئیں یزداں کی آیتیں حفیظ بن عزیز मेहनत , लगन , ख़ुलूस , मुरव्वत व मामता लिक्खी हैं माँ के चेहरे पे क़ुरआँ की आयतें बोसा लिया जो माँ की जबीं का तो यह लगा मेरे लबों से छू गईं यज़दाँ की आयतें
اے کاش کہ ہر بندہ پہ یہ راز عیاں ہو کہ اپنے مقدر کے ہمیں ، آپ ہیں کاتب خلّاقِ جہاں نے تو ہمیں عقل عطا کی ہے تنگ عمل سے یہ مری آپ کی راتب حفیظ بن عزیز ऐ काश ! कि हर बंदे पा यह राज़ अयाँ हो कि अपने मुक़द्दर के हमीं ,आप हैं कातिब ख़ल्लाक़े जहाँ ने तो हमें अक़्ल अता की है तंग अमल से यह मेरी , आप की रातिब
(अयाँ=reveal,कातिब=writer,ख़ल्लाक़े जहाँ =World creator,God,रातिब=ration)