اگر ہوتا یہ ممکن اور کچھ دن ساتھ رہ لوں گا
تو میں ماں کے کفن کو سات پردوں میں چھپا دیتا
حفیظ بن عزیز
अगर होता यह मुम्किन और कुछ दिन साथ रह लूंगा
तो मैं मां के कफ़न को सात पर्दों में छुपा देता
हफ़ीज़ बिन अज़ीज़-
सारे जहाँ से अच्छा हिन्दोस्तां हमारा
شکوہ کبھی زبان پہ لاتے نہیں ہیں وہ
خود کو تراشنے کا ہنر جانتے ہیں جو
حفیظ بن عزیز
शिकवा कभी ज़बान पे लाते नहीं हैं वह
ख़ुद को तराशने का हुनर जानते हैं जो
हफ़ीज़ बिन अज़ीज़-
अजब मंज़र यह मेरी डूबती आंखों ने देखा था
सहारा दे रहे थे यार मेरे , मेरे क़ातिल को
हफ़ीज़ बिन अज़ीज़
عجب منظر یہ میری ڈوبتی آنکھوں نے دیکھا تھا
سہارا دے رہے تھے یار میرے , میرے قاتل کو
حفیظ بن عزیز-
वही देता है पहले हुक्म शोलों को भड़कने का
वही नमरूद का सारा घमंड भी तोड़ देता है
हफ़ीज़ बिन अज़ीज़
وہی دیتا ہے پہلے حکم شعلوں کو بھڑکنے کا
وہی نمرود کا سارا گھمنڈ بھی توڑ دیتا ہے
حفیظ بن عزیز-
हुनर जितने भी आते हों मगर मल्लाह दरिया में
मुख़ालिफ़ सिम्त जाने में पसीना छोड़ देता है
हफ़ीज़ बिन अज़ीज़
ہنر جتنے بھی آتے ہوں مگر ملاح دریا میں
مخالف سمت جانے میں پسینہ چھوڑ دیتا ہے
حفیظ بن عزیز-
भरोसा जब कभी करना किसी पर,इस तरह करना
कि जब बिछड़ो तो आंखों में कभी आंसू नहीं आये
हफ़ीज़ बिन अज़ीज़
بھروسہ جب کبھی کرنا کسی پر , اس طرح کرنا
کہ جب بچھڑو تو آنکھوں میں کبھی آنسو نہیں آئے
حفیظ بن عزیز-
कभी भी देखना , कश्ती वही डूबी समंदर में
जो अपने नाख़ुदा से,बादबांं,पतवार से उलझी
हफ़ीज़ बिन अज़ीज़
کبھی بھی دیکھنا,کشتی وہی ڈوبی سمندر میں
جو اپنے ناخدا سے , بادباں , پتوار سے الجھی
حفیظ بن عزیز-
हंसी तो मेरे लबों पर भी आई थी लेकिन
यह कब की बात है, पूछो ज़रा ज़माने से
हफ़ीज़ बिन अज़ीज़
ہنسی تو میرے لبوں پر بھی آئی تھی لیکن
یہ کب کی بات ہے , پوچھو ذرا زمانے سے
حفیظ بن عزیز-
दुआयें बेच के पैसा कमाने वालों का
ख़ुदा,ख़ुदा ना हुआ काम का रोबोट हुआ
हफ़ीज़ बिन अज़ीज़
دعائیں بیچ کے پیسہ کمانے والوں کا
خدا, خدا نہ ہوا کام کا روبوٹ ہوا
حفیظ بن عزیز-
ہاتھوں کو باادب در اقدس پہ رکھ کے پھر
آنکھوں نے میری چوما تھا روضہ رسول کا
حفیظ بن عزیز
हाथों को बा-अदब दरे अक़दस पे रख के फिर
आंखों ने मेरी चूमा था रौज़ा रसूल का
हफ़ीज़ बिन अज़ीज़-