हम माँग बैठे थे चाँद,छोड़कर के सभी तारे,
क्यूँ ही उम्र ग़ुजारने का सोचा, तेरे सहारे...!!
हम तो समझ बैठे थे, तू ना बदलेगा कभी,
सब बदला, पहले जैसा तू भी कहाँ रहा रे...!!
सब देखें ख़ुद को, ना देखें अपने मन को,
खोजें सच्चा दिल, दिल वो मिलते कहाँ रे...!!
पहले जैसा ही कौन रह पाता यहाँ हमेशा,
है हौले-हौले बदल गया कितना ये जहां रे...!!
हमें देखने का नज़रिया भी बदला लोगों का,
नहीं थे हम भी पहले उनके लिए इतने बेचारे...!!
कैसे समझाएँ दुनिया को हार गया ये दिल,
दिल के हाथों मजबूर हों, हम ख़ुद हैं हारे...!!
दर-दर की खाकर ठोकरें,कट रही है हयात,
मजनू बनकर दुनियाभर में फिरते मारे-मारे...!!
मन्दिर-मस्ज़िद,ईश्वर-अल्लाह सब पूजा "नूर",
क्यों ये दिल आज भी, बस एक तुझे पुकारे...!!
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