जिनसे तुम्हें समझा सकें,
है दफ़्न जो दिल में
तुम तक पहुँचा सकें...!!
है हाल बहुत नाज़ुक
दर्द भी है रवां-रवां,
ज़िन्दगी की चाहतें
अभी हैं जवां-जवां...!!
तुम ले आना वो शब्द
जो समझ सको तुम,
हाल-ए-दिल हमारा
ज़रा पढ़ सको तुम...!!-
जिनके होने से अस्तित्व मेरा...!
जिनके होने से ही पहचान है...!!
मेरा धरती पर होना जिनसे है...!
मेरी दोनों "माएँ" ही मेरी जान हैं...!!
जीवन में सारा कुछ ही जिनसे है...!
मेरी लिए माँ ही दुनिया, जहान हैं...!!
बिन कहे जो सब जान लेती हैं...!
माँ दुनिया भर में सबसे महान हैं...!!
मेरी मुस्कुराने की वजह हैं जो...!
मेरी माँ ख़ुशियों का आसमान हैं...!!
न रखिएगा कभी उम्मीद किसी से...!
बाकि सारा जहां तो बे-ईमान है...!!
मात्र दिखावे का प्रेम है हर जगह...!
"माँ" ही प्रेम का सार्थक नाम है...!!-
दिन ढलते ही कुछ हो जाना, तेरा,मेरी बातों पर मुस्काना...!
शाम होते ही याद आता है, मुझे अब भी ग़ुज़रा ज़माना...!!
वो कभी-कभी रूठ जाना, एक-दूजे को यूँ ही सताना...!
शाम होते ही याद आता है, वो एक-दूजे को यूँ मनाना...!!
वो पूछना 'खा लिया खाना', वो खाने के व्यंजन गिनाना...!
शाम होते ही याद आता है, अब कैसा वक़्त है वीराना...!!
क्या तुम्हें याद है कुछ जाना, वो बिना बात बहक जाना...!
शाम होते ही याद आता है, तुम्हारा,मुझे रोज़ आज़माना...!!
वो मुझे पल-पल रुलाना, वो तेरा यूँ मुँह मोड़ जाना...!
शाम होते ही याद आता है, तुम्हारा मुझे यूँ छोड़ जाना...!!-
हार जाता है मन जब
हो अनगिनत बेचैनियाँ...!
ख़ुद ही ख़ुद में सिमटती हैं
ये जीवन की कठिनाइयां...!!
कुछ पाने की ये चाहतें
कुछ खो जाने का भय भी...!
लापरवाह नहीं हो सकते
हाँ, इतना तो है तय भी...!!
चल रहा है जीवन भी
यूँ सतत अपने पथ पर...!
कभी-कभी कुछ वक़्त में
द्वंद्व घेर लेता है अक्सर...!!-
मैं ताक रही थी उसका चेहरा, लग रहा था जैसे देखेगा वो...!
सोच रही थी जाने क्या-क्या, एक बार सही मग़र पूछेगा वो..!!
जाना ही चाहत थी उसकी, मैं रोक भला कैसे सकती थी...!
अपने अपनों की ख़ातिर ही, मैं त्याग उसे भी सकती थी...!!
कैसे हो जाती तब मैं उसकी, जब वो ठहर सकता ही न था...!
कर चुकी ख़ुद को नाम उसके, वो ये कर सकता ही न था...!!
न रोक सकी मैं हक़ जता कर, मैं ख़ुद ही, ख़ुद से हारी थी...!
जाने दिया मैंने उसे, बस उसकी ख़ुशियाँ ही मुझे प्यारी थी...!
खड़ी थी अपने नयन बिछाए, मैं तब वहीं द्वार से सटकर...!
एकबार भी उसने मग़र मुझे, तब "देखा नहीं पलटकर"...!!-
किसी को हम पर भरोसा नहीं...!
तो किसी पर हमें भरोसा नहीं...!!
भरोसा रिश्ते की नींव है ज़नाब,
यूँ ही, हर किसी पर होता नहीं...!!
दर्द होता है बहुत टूट जाने पर,
भरोसा है, कोई खिलौना नहीं...!!
आँखें मूँद किया, भरोसा हमने,
भरोसे पर कोई, उतरा ख़रा नहीं...!!
कोशिश की शिद्दत से, निभाने की,
दिया हमने, किसी को धोखा नहीं...!!
कर सकें सब पर संभव नहीं "नूर",
होता है ख़ुद, इसे कोई बोता नहीं...!!-
हम माँग बैठे थे चाँद,छोड़कर के सभी तारे,
क्यूँ ही उम्र ग़ुजारने का सोचा, तेरे सहारे...!!
हम तो समझ बैठे थे, तू ना बदलेगा कभी,
सब बदला, पहले जैसा तू भी कहाँ रहा रे...!!
सब देखें ख़ुद को, ना देखें अपने मन को,
खोजें सच्चा दिल, दिल वो मिलते कहाँ रे...!!
पहले जैसा ही कौन रह पाता यहाँ हमेशा,
है हौले-हौले बदल गया कितना ये जहां रे...!!
हमें देखने का नज़रिया भी बदला लोगों का,
नहीं थे हम भी पहले उनके लिए इतने बेचारे...!!
कैसे समझाएँ दुनिया को हार गया ये दिल,
दिल के हाथों मजबूर हों, हम ख़ुद हैं हारे...!!
दर-दर की खाकर ठोकरें,कट रही है हयात,
मजनू बनकर दुनियाभर में फिरते मारे-मारे...!!
मन्दिर-मस्ज़िद,ईश्वर-अल्लाह सब पूजा "नूर",
क्यों ये दिल आज भी, बस एक तुझे पुकारे...!!-
क्यों यह सवाल दिल से नहीं जाता...!
तुम्हारा ख़याल दिल से नहीं जाता...!!
कोशिश तो बहुत होती है भूल जाएँ...!
यह मग़र बे-हाल दिल से नहीं जाता...!!
आहिस्ते-आहिस्ते ख़ुद को भूलें हैं...!
रू-ब-ज़वाल दिल से नहीं जाता...!!
तुम नूर हो मिरी हयात का महबूब...!
तुम्हारा जलाल दिल से नहीं जाता...!!
तुम्हें ख़बर है हुस्नो-ज़माल हो तुम...!
तुम्हारा ज़माल दिल से नहीं जाता...!!
तुम ही थे बस तुम ही रहोगे ता-उम्र...!
दिल-ए-तमाल दिल से नहीं जाता...!!
कितना कुछ तो बदल गया है अब...!
है कैसा बवाल दिल से नहीं जाता...!!
तुम्हारा ख़याल दिल से नहीं जाता...!
ये ता-ब-सवाल दिल से नहीं जाता...!!-
दहर वालों से नहीं मेरी जाँ,
हम तो ख़ुद से नाराज हुए...!
तुम्हारी मोहब्बत में सनम,
कुछ इस क़दर ताराज हुए...!!-
ज़िन्दगी का क्या है, ये बस यूँ ही चल रही है,
ज़िन्दगी में सिर्फ एक तुम्हारी कमी खल रही है...!!
तुम्हें लगता होगा ना कि ख़ुश तो बहुत हैं हम,
ना मेरी जाँ, उल्टा ये ज़िन्दगी हमें छल रही है...!!
थे क्या हम कभी और क्या से क्या हुए हैं अब,
ज़िन्दगी अब वैसी नहीं रही, जैसी कल रही है...!!
तुम्हें क्या ख़बर पल-पल किस हाल में हैं हम
ख़ुद से हर लम्हा, जंग में, ये जान जल रही है...!!
ज़र्रा-ज़र्रा इक बस तेरा नाम पुकारता है दिल,
तुमसे मिलने की ख़्वाहिश अब भी पल रही है...!!
मर तो कब के गए हैं,अब देह मिटना बाकी है,
कि आती नहीं मिलने,मौत भी यूँ ही टल रही है...!!
क्या चाहा था,कि अब क्या पाया है तुमने "नूर",
हमारी ही बे-कद्री का यह ज़िन्दगी फल रही है...!!-