मेरे अनुभव मुझे अब रास्ता दिखला रहे है।
सोचता हूँ की अब मै भी रास्ते स्वयं देखूँ।।
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वरना काट तो सब लेते है जिंदगी को।।
लौटकर आते मगर इंतज़ार किसे था।
कह भी देते तो इकरार किसे था।।
इसी डर में शायद कहा नही कभी।
की इंतज़ार में हम थे इंतज़ार हमसे था।।
-:GMT...-
*आना साथ मे पढ़ेंगे कभी।* *किताब मेरी है तो जज़्बात मेरे बयां करती है।।* *-:ज्ञानेंद्र...*
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उनसे प्यार करते है ना,जो हमसे प्यार करते है।
गिनती में ही सही बहुत है,जो हमारा ख़याल करते है।।
-:ज्ञानेंद्र...-
कभी तफ्तीश तुम करना,बिताए पल की खुद अपने।
बहुत लमहे तुम्हें अपने,हमारे याद आएंगे।।
-:ज्ञानेंद्र...♥️-
हम बिगाड़ना जानते है हम सवारना भी जानते है।
हम दुलरना जानते है हम दुलारना भी जानते है।।
हम पुरुष है हम समझते बड़ी जल्दी से है।
जनाब हम समझाना भी जानते है।।
-:ज्ञानेंद्र...♥️
अन्तर्राष्ट्रीय पुरुष दिवस...🙏-
वो बातों से बिस्तरे तक का साथ न अपना।
हाँ दूरी से सही मगर सजदे में मूरत साथ देखी है।।
-:ज्ञानेंद्र...♥️-
जिस तरह चाँद और ध्रुव एक दूसरे के पूरक है पर साथ नही दिखते।
तो क्या हम तुम बिना साथ दिखे एक दूसरे के पूरक नही बन सकते।
जिस तरह दिन और रात एक दूसरे को पूरा तो करते है पर साथ नही आ सकते।
क्या हम तुम बिना साथ आये एक दूसरे के पूरा नही कर सकते।।
मोहब्बत है बेहिसाब पता है,पर जरूरी नही की ज़िंदगी भर का साथ निश्चित ही हो।
ये आज जो हमारे पास और हमारे साथ है क्या इसमे हम साथ नही रह सकते ?
-:ज्ञानेंद्र...♥️
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मेरे गाँव में आज भी लोग छप्पर तक मिलके उठाते हैं।
आपके शहर में तो अर्थी उठाने को भी लोग कम पड़ जाते हैं।।
मेरे गाँव में लोग बीत चुकी बातें भी याद रखते हैं।
आपके शहर में तो ज़िंदा लोगों को लोग भूल जाते हैं।।
-:ज्ञानेंद्र...
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मेरी जीत में अगर साथ तू है,तो वो मेरी जीत है।
तेरे न होने पे जीत भी क्या खाक कोई जीत है।।
ज़िंदगी चलती रहती है मुसलसल रुकती नही है।
ज़िंदा रहे तो इस पार,वरना उस पार कहाँ जीत है।।
-:ज्ञानेंद्र...-