Gyan Prakashh   (©𝓖𝔂𝓪𝓷)
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Joined 21 May 2021


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Joined 21 May 2021
30 APR AT 20:19

"नज़रों में वो किताब-ए-ज़माना लिख गया,
जिसका हर वर्क़ चिराग़ाँ बन के रह गया...
उसके होने से अंधेरों को रौशनी मिली,
पर वो ख़ुद एक सिलसिला-ए-नादानी बन गया॥

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30 APR AT 20:15


निगाहों में बसी हैं सदियों की निर्जन तारीक़ियाँ,
एक लम्हा नज़र आया तो ज़माने भर की रौशनियाँ॥

वो हुस्न-ए-ख़ुदा है मेरे वजूद में जैसे फ़ना हो जाए,
न सिमटे कोई आईना, न तस्वीर कोई, न साया जाए॥

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29 APR AT 12:55

रोज़ सुबह उठकर देखूँ तो लगता है,
दुनिया का बोझ कंधों पे सारा है।
वक्त की रफ़्तार से कदम मिलाते-मिलाते,
थक कर बैठें तो रास्ता नज़ारा है।

ऑफिस की चाहत, घर की फ़िक्र में,
साँसों का हिसाब किताब सारा है।
मेहनत की लकीरें हथेली पे गहरी,
पर दिल में उम्मीद का दिया बुझता कहाँ है,

शाम ढले जब ख्वाब टूटते देखूँ,
तो लगता है ज़िंदगी यही सिलसिला है।
मगर चलते रहने की आदत सी पड़ गई,
क्योंकि संघर्ष ही तो जीने का असली नाम है।

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4 APR AT 1:30

दिल के ज़ख्मों की गहराई कोई नाप सके तो बताना,
हर साँस में उदासी का समंदर, दर्द ये कहाँ बयाँ हो पाए...।

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14 MAR AT 19:43

हाय कम्बख़त ये मोहब्बत,
बार बार होती है,
फ़कत उसी शख़्स से,
हर बार होती है।

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22 FEB AT 14:51

कोई समझे या ना समझे,
बस वो समझती रहे!

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11 JUL 2024 AT 15:38

कभी कभी लोग सत्य के उसी अंश को मानते हैं,
जितना उनकी सुविधानुसार सत्य हो।

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10 JUN 2024 AT 20:06

आईने में एक शख्स घूरता है मुझे,
आंसू आंखों में लिए तकलीफ छिपाये।

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24 MAY 2024 AT 15:17

इंतजार का दुख,
कोरे ख्वाब का दुख,
सारे मतलबी,
बेमतलब प्यार का दुख।

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22 MAR 2024 AT 7:53

क्या कहूं क्या मोहब्बत है,

हर बार समझना मेरी आदत है,

उसे अपनी चीखों में मैं पाऊं

उसकी तस्वीर मेरी कमजोरी,

और ना जाने कैसे वही ताकत है।

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