"नज़रों में वो किताब-ए-ज़माना लिख गया,
जिसका हर वर्क़ चिराग़ाँ बन के रह गया...
उसके होने से अंधेरों को रौशनी मिली,
पर वो ख़ुद एक सिलसिला-ए-नादानी बन गया॥-
निगाहों में बसी हैं सदियों की निर्जन तारीक़ियाँ,
एक लम्हा नज़र आया तो ज़माने भर की रौशनियाँ॥
वो हुस्न-ए-ख़ुदा है मेरे वजूद में जैसे फ़ना हो जाए,
न सिमटे कोई आईना, न तस्वीर कोई, न साया जाए॥
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रोज़ सुबह उठकर देखूँ तो लगता है,
दुनिया का बोझ कंधों पे सारा है।
वक्त की रफ़्तार से कदम मिलाते-मिलाते,
थक कर बैठें तो रास्ता नज़ारा है।
ऑफिस की चाहत, घर की फ़िक्र में,
साँसों का हिसाब किताब सारा है।
मेहनत की लकीरें हथेली पे गहरी,
पर दिल में उम्मीद का दिया बुझता कहाँ है,
शाम ढले जब ख्वाब टूटते देखूँ,
तो लगता है ज़िंदगी यही सिलसिला है।
मगर चलते रहने की आदत सी पड़ गई,
क्योंकि संघर्ष ही तो जीने का असली नाम है।-
दिल के ज़ख्मों की गहराई कोई नाप सके तो बताना,
हर साँस में उदासी का समंदर, दर्द ये कहाँ बयाँ हो पाए...।-
हाय कम्बख़त ये मोहब्बत,
बार बार होती है,
फ़कत उसी शख़्स से,
हर बार होती है।-
कभी कभी लोग सत्य के उसी अंश को मानते हैं,
जितना उनकी सुविधानुसार सत्य हो।-
आईने में एक शख्स घूरता है मुझे,
आंसू आंखों में लिए तकलीफ छिपाये।-
इंतजार का दुख,
कोरे ख्वाब का दुख,
सारे मतलबी,
बेमतलब प्यार का दुख।-
क्या कहूं क्या मोहब्बत है,
हर बार समझना मेरी आदत है,
उसे अपनी चीखों में मैं पाऊं
उसकी तस्वीर मेरी कमजोरी,
और ना जाने कैसे वही ताकत है।
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