gustakh siyahi   (गुस्ताख़ सियाही..)
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Poet-May be! Yet to be!, Believer.
Joined 16 December 2017


Poet-May be! Yet to be!, Believer.
Joined 16 December 2017
25 JUL 2022 AT 23:11

मुझे तो 'कहानी' लिखनी थी।
बे-ग़ैरत ने
बेवजह,
बेरंग हक़ीकत बना दी।

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17 JAN 2022 AT 23:20

There is no
eloquence to it
I just miss you!

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7 JAN 2022 AT 22:24

क्या लिखू!?

घुँघरू , काजल,
झुमका, आँचल,
कुमकुम, कंठी
चूनी, कंगन,,,

कुछ नहीं ,
कुछ भी नहीं।

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18 DEC 2021 AT 20:55

वो कुछ लम्हे!

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16 DEC 2021 AT 21:01

वो क्या है ना!
अपनी बातों को भी
'अपनी' बातें प्रिय
लगने लगी थी
'नादान' जो है।

इन्हें क्या पता!
हम किन उलझनों मे
उलझे हुए है।
'इंसान' जो है।

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15 DEC 2021 AT 21:51

'बेतुकी' बात अधूरी थी।
'रंजीदा' रात अधूरी थी।
'मुक़द्दस' मोहब्बत अधूरी थी।

बात, इज़हार की,
रात, इंतजार की और
मोहब्बत, एकतरफा जो थी।

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14 DEC 2021 AT 20:37

If there's any kind of
magic in this world,
it must be in the attempt of
understanding someone,
sharing something.

#beforesunshine

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6 DEC 2021 AT 22:06

दुनियामें सबसे दूर का व्यक्ति कौन है ?
आईने में नज़र आता इंसान,
जो अपना न लगे।

और सबसे बड़ी आत्मानुभूति?
जब हम उसी इंसान को अपनाने
के लिए आगे बढ़े ।

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25 NOV 2021 AT 23:37

दिल-ए-बेचारगी कहो
या कहो हिज्र की इंतेहा।

यु दूरियों से भरा हर पल, बस ज़ाया है,
बड़ी आस से, तेरी नींदमे एक ख्वाब बोया है।

गर! कही ख़्वाब भी तेरे वस्ल के
बगैर अधूरा रह जाएं, फिर तुम
मेरी रहगुज़र का रूख करो
कुछ ऐसा हो जाएं ।

सुना है तुम अपने पंखसे
हवाओं से बाते करते हो।

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21 NOV 2021 AT 12:33

मेरे सारे ऐब ने शिकायत की है।

"आए-दिन तुम अपनी
अच्छाइयों की नुमाइश
मत किया करो! आख़िरश,
रिश्ते संभालने का सारा
दारोमदार मुझपर आ बसता है।

इंसान हो इंसान ही बने रहो।"

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