जला दिया था सब....
मैने उस सर्द रात में, उठती लपटो मे
मेरी डायरी के वो कुछ भीगे पन्ने,
जिक्र जिन पर तेरा था।
दिया वो तेरा गुलाब....,
जिसकी सूखी पत्तियों से महकता हर पन्ना मेरा था।।
जुबा भी मेरी "वो नहीं जानता मैं उसे कितना"
ये कहते-कहते रुकी थी।
क्या धड़कने भी तेरी
कभी मेरे नाम से कभी थमती कभी बढ़ी थी।।
या मैं ही बावरी सुध बुध गवये तेरे पीछे पड़ी थी।।
हां.. जला दिया सब... उस सर्द रात में
मेरे नाम के पहले अक्षर में छुपाया
जो तूने तेरे नाम का पहला अक्षर था।
बुन अक्षर को अक्षर में बुना जो तूने हमारा अक्षर था।।
रुके तुम नहीं, ऐसा नहीं कि हमने रोका नहीं।
जाने को कहा माना, जान... तुम तो मुझे
जानते हो ना फिर कैसे तुमने मुझे पहचाना नहीं।।
निशा हमरे सब उठती लपटों में जल राख हो गए।
हमारे ही हाथों हमारे हर अरमा खाक हो गए।।
__(Tumhari chashmish❤)
_Gustakh_dil
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