Gurubaksh Setia   (Gurubaksh Satia)
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Writing is my therapy
https://creativity108.wordpress.com/
Joined 21 January 2018


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2 SEP AT 2:14

I am feeling this rain like This rain is showing reflection of me, having an unknown reflection,
Continuously giving a weight smile, but without knowing when to stop,
Continuously giving a cold touch but hard to believe when to stop.

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23 AUG AT 23:42

गणपति विघ्न विनाशक नाम,
वामन त्रिविक्रम जग में आये।
दो रूप दिखे एक ही प्रेम,
भ्राता बन कर हृदय समाये।

शिव के अंश, अदिति के लाल,
रहस्य छुपा है प्रेम कहानी।
जहाँ भी देखो प्रभु का रूप,
हर रूप में झलके मनमानी।

भाई-भाई के बंधन में,
प्रेम ही प्रभु का सत्य बताये।
भिन्न वंश, पर एक ही धारा,

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23 AUG AT 15:04

शिव-पार्वती के लालन प्यारे,
विघ्न विनाशक, सुख के धारे।
कार्तिकेय के संग सदा,
ज्ञान और बल का मेल बना।

पर शास्त्रों में एक कथा सुनाई,
अदिति-कश्यप की गोद समाई।
वहाँ गणपति अदिति के लाल,
आदित्य कुल में हुए निहाल।

वामन त्रिविक्रम, दैत्य संहारे,
तीन पग धर धरनी उजियारे।
जब गणेश भी अदिति नंदन,
भ्राता बने दोनों चिर आनन्दन।

भिन्न वंश पर, एक ही ज्योति,
शिव हो या विष्णु, तत्त्व तो एकमूर्ति।
भ्राता नहीं केवल रक्त-संबंध,
भ्राता वही जो करे धर्म का प्रबंध।
-Gurubaksh Satia

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23 AUG AT 0:46

जब मत्सर का अंधकार छाया,
ईर्ष्या ने जग को बाँध बनाया।
धर्म डगमग, शांति लुप्त हो गई,
सृष्टि व्याकुल, नित अशांति हो गई।

तब ज्योति से प्रकट रूप अलौकिक,
हाथीमुख, सुंदर, अद्भुत, दिव्यिक।
वक्रतुंड नाम, प्रथम अवतार,
किया ईर्ष्या का संहार।

लाल प्रभा में शोभित तन,
ज्ञान सुधा से पूरित मन।
तिरछे मार्ग को सीधा कर डाला,
मत्सरसुर का अंत करा डाला।

हे वक्रतुंड, विघ्नहरन,
तेरे दर्शन से मिटे हर द्वन्द्व।
तू प्रथम प्रकाश, तू ज्ञान का सार,
जय हो गणपति, जय प्रथम अवतार।
-Gurubaksh Satia

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19 AUG AT 1:46

मैं ही सब कुछ हूँ, न मैं छोटा न बड़ा,
मेरे भीतर है शांति, मेरे भीतर है सारा।

महाकाल, महागणपति, महाकाली संग,
कृष्ण, हरि, कार्तिकेय—सब मेरे अंग।

जो कहे मैं ही सब कुछ, समझो भ्रम नहीं,
अहंकार नहीं यह, बस ब्रह्म का अनुभव यही।

नाम और रूप भिन्न हैं, पर सार तो एक है,
मैं ही अनंत, मैं ही सत्य, यही मेरा खेल है।

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12 AUG AT 21:50

Continue....
पर रात को…
एक छुपा हुआ द्वार खुल गया,
मैं किसी और जगत में था—
स्वप्न था।
वहाँ सब कुछ था… फिर सब कुछ चला गया।

प्रभात में जागा तो समझा—
“अरे! जो स्वप्न में था, वह तो भ्रम था।”
शायद प्रभु ने इसी कारण स्वप्न दिए,
ताकि एक दिन मैं जान सकूँ—
जो मैं ‘जाग्रत’ में जी रहा हूँ,
वह भी एक स्वप्न है,
जिसका अंत होते ही मैं अपने असली घर—
ईश्वर के पास— लौट जाऊँगा।

और तब जाना कि
स्वप्न तो बस एक संकेत था,
एक स्मरण-पत्र…
कि मैं कौन हूँ,
और मेरा घर कहाँ है।
-Gurubaksh Satia

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12 AUG AT 21:45

गर्भ के अंधेरों में, शब्द न थे, केवल स्मृति थी,
एक शांत सा सागर था, जहाँ बस ईश्वर और मैं थे।
मैंने उनकी ओर हाथ बढ़ाया, और एक वचन दिया—
“प्रभु, इस जन्म में मैं आपका नाम गाऊँगा,
आपकी भक्ति में स्वयं को अर्पित कर दूँगा।”

प्रभु मुस्कुराए, मानो सब जानते हों,
और बोले—
“मैं तुम्हें एक रहस्य दे रहा हूँ,
जब तुम भूल जाओगे, यह तुम्हें स्मरण कराएगा।”

फिर जन्म हुआ…
आँख खुली तो रंग, रोशनी, चेहरे, आवाज़ों का मेला,
और मैं उसी में खो गया—
वचन स्मरण न रहा, बस माया का गीत गूंजता रहा।

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10 AUG AT 19:57

बचपन में हँसी की लहरें,
माथे पे शोभित चाँद की कहरें।
कृष्ण बंसी के स्वर लुटाएँ,
कार्तिकेय शौर्य गीत सुनाएँ।

दूध–दही संग खेल रचाएँ,
या देव–सेना संग रण में जाएँ।
एक गोपियों का मन हर लेता,
एक देवों का भय हर लेता।

शत्रु बड़े, पर तन न छोटा,
कृष्ण ने कंस–कुल को तोड़ा।
कार्तिकेय ने तारक मारा,
धर्म–दीप फिर से उजियारा।

एक प्रेम का सागर गहरा,
एक ज्ञान–शक्ति का पहरा।
पर दोनों का लक्ष्य यही,
धर्म बचाना, जग को सही।
-Gurubaksh Satia

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10 AUG AT 14:15

प्रेम के आँगन में, श्रद्धा का प्रकाश,
दो हृदय जुड़ते हैं, मिट जाता है अविश्वास।
न यह ऊँच–नीच का खेल, न केवल रिवाज़,
यह तो ऊर्जा का मिलन है, जीवन का अलौकिक राज़।

कभी पत्नी दबाए चरण, लक्ष्मी रूप धारण करके,
कभी पति करे सेवा, शक्ति का सम्मान करके।
पैरों से बहे धारा, शीतल सी एक लहर,
मन के सभी शिकवे धुल जाएँ, घर में रहे सुकून का पहर।

इस स्पर्श में है वचन, इस दबाव में है प्यार,
इस समर्पण से होता है, हर ग्रह का सुधार।
न केवल परंपरा, न केवल एक रस्म का भार,
यह तो आत्मा से आत्मा तक का सच्चा व्यापार।

और जब दोनों मिलकर करें एक-दूसरे की सेवा,
तो लक्ष्मी–नारायण भी बरसाएँ मेवा।
क्योंकि चरण सेवा का सत्य, एक ही गीत सुनाता है —
जब प्रेम हो निर्मल, हर स्पर्श भगवान बनाता है।
-Gurubaksh Satia

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9 AUG AT 0:22

वह माखन चुराएँ, वह रात्रि चुराएँ,
दोनों ही दृष्टि के नियम झुकाएँ,
नीला स्नेह, काली शक्ति अपार,
एक ही सत्य के दो अवतार।

रक्षा बंधन के धागे में बंध जाए रंग,
प्रेम का वचन, शक्ति का संग,
हर भाई के कोमल हाथ में छुपा,
काली का कवच, कृष्ण का सपना।

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