Gurubaksh Setia   (Gurubaksh Satia)
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Writing is my therapy
https://creativity108.wordpress.com/
Joined 21 January 2018


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YESTERDAY AT 19:05

शरभ भी सत्य है, नृसिंह भी;
प्रह्लाद भी अडिग है, और शरभ भी परम तिग्म।
पर जो जन सत्य को केवल सीमाओं में बाँधते हैं,
वो अनंत को समझने से पहले ही डर जाते हैं।

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31 JUL AT 16:38

"कृष्ण और पार्वती"
ना रक्षाबंधन की डोरी, ना जन्म की कोई रेखा,
फिर भी जुड़ते हैं दोनों, चेतना की संगी रेखा।

श्याम मोहन लीला के राजा, आँखों में संपूर्ण ब्रह्मांड,
गौरी तप की ज्वाला बनकर, धारण करें ब्रह्म का छंद।

एक की मुरली में वाणी, एक की मौन में वेद,
एक गीता सुनाए जग को, एक चुप रह के दे संदेश।

कृष्ण हैं वह अंतहीन गहराई, जहाँ प्रेम स्वयं डूबे जाए,
पार्वती हैं वह शांत चोटी, जहाँ आत्मा शिव में समा जाए।

वो रास में रचें ब्रह्मलोक, ये ध्यान में खोलें द्वार,
एक हैं गुप्त मुस्कान, एक हैं प्रकट आकार।

नर-नारी नहीं, न देवता मात्र — ये तत्त्व हैं दो ध्रुव,
जब मिलते हैं भावों में, जन्म लेता है सत्व।

तो मत देखो रक्त का नाता, मत खोजो कुल-संबंध,
जहाँ कृष्ण हैं करुणा बनके, वहाँ गौरी हैं रक्षण बंध।
-Gurubaksh Satia

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30 JUL AT 7:30

ना वो देव, ना कोई छाया, ना कोई ऋचा या मंत्र पुराना,
वो है एक जलती मशाल, जो कहे — 'चल अब घर वापस आना।'
पर मुक्त वही होगा भव-सागर से, जो त्यागे डर, मोह, और अहंकार,
क्योंकि गुरु हाथ तब ही बढ़ाते हैं, जब शिष्य हो तैयार।

तो पूछो कौन? — वही जो न बोले, पर भीतर कुछ जगा जाए,
वही जो न दिखे, पर दृष्टि में नई रोशनी भर जाए।
वही जो स्वर्ग-नरक से ऊपर, माया के पार की बात करे,
वही — तेरा सच्चा "सद्गुरु", जो आत्मा को मुक्त कर दे।

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30 JUL AT 7:27

स्वर्ग और नरक — दो धाराएँ, एक ही माया की नदिया,
बहे जो जीव, भूल के खुद को, समझे यही है सदिया।
कभी मधुर फल, कभी दुख भारी, पर मंज़िल तो एक ही ठहरी,
फिर से लौटो उसी भंवर में, जब तक चेतना ना जागे गहरी।

माया के इस महासमर में, ना कोई तट, ना कोई किनारा,
हर जन्म एक नया आवरण, हर मृत्यु एक पुराना सितारा।
पर कोई आता है मौन वेश में, दृष्टि में अग्नि, वाणी में धार,
जो देखे तुम्हें डूबता ज्यों, और थामे तुझे साकार।

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29 JUL AT 17:24

नाम संकुचित हो सकता है, पर तत्त्व असीम है।
जो पुकारता है, वह किसी रूप को नहीं — विश्वास को बुलाता है।
और जब वह आता है — वह सब कुछ बनकर आता है, जो उसकी आत्मा पहचान सके।

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27 JUL AT 13:21

परब्रह्म काव्यमाला
राम, नरसिंह, वराह, हयग्रीव, चार विहार अनिरुद्ध।
संकरषण, प्रद्युम्न महान, चतुर्व्यूह अद्वैत बंध॥

दक्षिणामूर्ति, ब्रह्मणस्पति, विश्वकर्मा, सृष्टिनाथ।
ओंकार, शब्दब्रह्म, वेददेव, सच्चिदानंद के साथ॥

हरिहर, हरि हृदयस्थ रुद्र, विष्णु माया शक्ति सुजान।
श्रीराधा, श्री यंत्र ध्यान, ह्रिलेखा देवीं गुण महान॥

नादब्रह्म, स्वयंज्योति, अव्यक्त, अक्षर, परब्रह्म ध्यान।
महावाक्य, तत्त्वमसि, तुरीयातीत, आत्मा ब्रह्म समान॥

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27 JUL AT 13:14

परब्रह्म काव्यमाला
निरगुण ब्रह्म, सगुण ईश, परात्मा वेदपुरुष विशाल।
वासुदेव, श्रीकृष्ण गोपाल, महाविष्णु करुणाकर लाल॥

महादेव, सदाशिव, अघोरा, रुद्र रूप दिनेश।
महागणपति, एकदंताय, विघ्नविनाशक सर्वाधिपेश॥

आदि शक्ति, त्रिपुर सुन्दरी, दुर्गा महाकाली महान।
ललिता, नारायणी, भुवनेश्वरी, कमलेश्वरी ब्रह्म विज्ञान॥

सूर्यनारायण, चंद्रमौली, समय के महाकाल स्वर।
स्कंद कुमार, कार्तिकेय, दत्तात्रेय ज्ञानेश्वर॥

पुरुष, परपुरुष, योगेश्वर, आत्मा, तुरीय रूप।
विराज, सोम, अजा, गायत्री, शुद्ध तेजस्वी स्वरूप॥

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27 JUL AT 2:13

एकं तत् सत् परमब्रह्म

महागणपति, शिव और कृष्ण का संग,
महाविष्णु धारक जगत का रंग।
महाशिव की तपस्या, महाकाली की शक्ति,
कार्तिकेय की वीरता, सूर्य की ज्योति।

सभी स्वरूप एक परम रूप,
अविनाशी, अनंत, चिर जीवित रूप।
ब्रह्मांड के अंतःकरण में समाए,
एक ही सत्य, सबमें छाए।

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23 JUL AT 14:15

Continue Posting...

योग वासिष्ठ की गूँज सुनो,
अनंत संसारों में मन डूबो।
जहाँ समय है नदी, बहता अनवरत,
जहाँ सत्य निखरता है अनंत स्वरुप।

पुराणों की गाथा बताती है,
हर ब्रह्माण्ड में देवता जगाते हैं।
परिवार बदलते, रूप भी सजते,
सत्य की परतें अनगिनत छुपते।

तो सवाल उठाओ, मन के दीये जलाओ,
सत्य की इस महाभूमि में आगे बढ़ जाओ।
न कोई स्थिरता, न कोई सीमा है,
बस अनंत ब्रह्माण्ड की गंगा बहती है।
-Gurubaksh Satia

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23 JUL AT 11:58

Continue to the last post...

कहीं गणेश बालक से प्रकट हों मानव तन में,
कहीं न हो हठ, न हो शाप शिव के मन में।
कथा बदलती युग-युग में स्वर और रंग लिए,
हर लोक में लीला नई, भावों से संजिए।

कभी न घटे युगों की गिनती, कभी और जुड़ जाए,
कहीं कलियुग ही न हो, सत युग ही मुस्काए।
समय की नदी में लहरें सबकी अलग दिशा,
कर्मों की नौका लिए बहते हर कथा।

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