जिंदगी कैसी है? शायद मेरे लिए इस जिंदगी का कोई मोल नहीं रहा,,
शायद इतना सब देख लिया कि जी उठ गया हो जैसे,,
कैसे मुझे ये दुनिया से नफ़रत होने लगी,,
आखों में गुस्सा आने लगा हो जैसे,,
जैसे कहते हैं ना कि मौजूदगी ज़रूरी है,
ऐसा लगता है कोई साथ छुट गया हो जैसे,,
मुझे फर्क़ नहीं पड़ता आज,,
फिर चाहे मैं अकेली ही क्यूँ ना हूं,,
मुझे जरूरत थी किसी की मोहब्बत की जैसे,,
इश्क़ संग फ़िर आखों में नमी ही क्यूँ ना हो,,
एक अलग सी तड़प महसूस होती हो जैसे,,
और मुझे नशा नहीं करना कोई सस्ते वाला,,
इश्क़ का बुखार जब मेरे सर चढ़ा हो जैसे,,
-
Lost in Love!! ♡
'Spread More Happiness, Everywhere You Go'💫
अभिलाष ? कुछ कहना था,,
कुछ लफ़्ज़ होठों तक आकर दिल छु जाते हैं,,
जानते हैं वहीं लफ़्ज़ हैं आप,,
बस इतना ही,, ❤-
माना किसी से प्यार है आपको,,
मगर आपको भी कोई बहुत प्यार करता है,,
आपने ख़ुद को मिटाने की सोची कैसे,,
एक दिल मुझमे है जो सिर्फ़ आप पर मरता है,,
⚡-
"हर ना का मतलब इंकार नहीं होता,
हर हाँ का मतलब इकरार नहीं होता,
ये तो दिल मिलने की बात है जनाब,
वरना कभी कभी सात फेरों में भी प्यार नहीं होता"
🥺❤-
"ज़िन्दगी जीने के नज़रिए को बदलिए,
ज़िन्दगी फ़िर भी बोहोत खूबसूरत है"✨-
"तेरी नजरों से सदका उतारा करें,
तुझ को अपने हाथों से सवारा करें,
दिल मोहब्बत कर बैठा तुझसे,
अब बता कैसे गुजारा करें,
♥️-
"हर दिन तो हमारा भी फीका है,
आपके बिन ये दिल कहाँ रहना सीखा है,
मैं कह दूँ जो मर्जी भले गुस्से में,
पर कहाँ ये दिल का रवैय्या आपसे तीखा है ?
मैं मिर्ची जैसी ज़रूर हूं,
पर इश्क़ का जुनून आपके जैसा ही मैंने पाया है,
अब आपको कैसे बताऊ जान,
कि दिन तो दिन,
और रात भर रात मैंने सिर्फ आपसे प्यार निभाया है"
♥️🌍-
"सोचती हूं की क्या कहूं ?
कब कहूं ? कितना कहूं ?
किसे कहूं ? क्यों कहूं ?
क्यों न कहूं ?
कैसे कहूं, ये चांद से कहूं या सितारों से कहूं ?
तुमसे कहूं या खुद से कहूं ?
किस्से कहानियां कहूं या जज़्बात कहूं ?
समझती नही की इन्हे वाक्यता कहूं,
सिरफिरा कहूं या आशिक़ कहूं ?
दर्द कहूं या मरहम कहूं ?
आखों से कहूं या मुंह जुबानी कहूं ?
अपनों से कहूं या परायों से कहूं ?
सच कहूं, झूठ कहूं ?
ईमानदार से कहूं या बईमान से कहूं ?
सच बताऊं तो मैं वो हिस्सा हूं,
जो ढूंढ रही हूं,
की कब कहूं, कितना कहूं ?
किसे कहूं, क्यों कहूं ?
क्यों ना कहूं ? "-
"एक तरफ़,
हुई थी मोहब्बत उन्हें भी,
उस इश्क़ का ये अंजाम था,
कि एक हाथ में कलम थी उनके,
और दूसरे हाथ में जाम था,
वो तो बस भूल चुके थे उस राह को,
जिस पर जन्नत ए नूर था,
उन्हें तो जितना मिला काफ़ी था,
उतना ही मंज़ूर था,
कि दोबारा इश्क़ ना होगा कभी किसी से,
वो भी उन्हें राज़ी था,
पर दिल का फ़िर कहीं जुड़ जाना,
फ़िर उन्हें कुबूल था,
पर क्या पता नज़म मोहब्बत में,
उस आशिक़ का होना क्या अंजाम था,
कहीं फ़िर से तो नहीं मंज़ूर किस्मत को,
वो कलम और जाम था।"-
"वो तो कहते हैं, गुरि तू हंसती अच्छी लगती है,
आसूं और दर्द की मोहताज नहीं,
तेरा दिल जितना साफ़ है,
मैंने देखा किसी का आज नहीं,
तारीफों में मेरी जैसे हदे लांघ जाते है,
गुरी वो जितना दिखाते नहीं,
उससे भी ज़्यादा तुझे चाहते है,
ख्वाबों की दुनिया से मै भरी नहीं थी,
कि ख्वाब ही हकीक़त में बदलते मैंने देखा है,
मैंने खुद को खुद से ज़्यादा चाहने वाला,
ज़िन्दगी में पहली बार देखा है,
पाया उसे की बोहोत देर हो चुकी थी,
पर शायद जिनका इश्क़ सच्चा था,
उन्हें फिक्र हो रही थी,
मै लगती रही खुद पर बढ़ती उमर की पाबंदियां,
लेकिन गुरि किसी को तुझसे ताउम्र की मोहब्बत हो रही थी,
उन्हें आज भी तेरा उनके साथ ना होना गवारा नहीं,
शायद यही उनका इश्क़ था,
कोई सहारा नहीं।"-