होटल में काम करता हर बच्चा
मजबूर नहीं होता
कुछ घर के अनुशासन को बन्धन
समझ निकल जाते हैं स्वछन्दता
की चाह में ,
वापस आने पर नहीं दिखता उन्हें
बच्चे की खोज में निकले पिता की
भटकती आंखे
तानों से भरे कान
माँ की जागती रातें ........-
मेरी भाषा में ... read more
कुछ समय के लिये ही सही
पर ,स्वछन्द सब होना चाहते हैं
जिन्हें ये नहीं मिलता ......
सब को देख कर कूढते रहते हैं ....?????-
न पीर पैगम्बर ,न रहबर हूँ तिरा
पाके जमीं जिस जगह मिली
सज्जदा -ए सिर झूका लिया मैंने ।-
जिंदगी से मौतआसान है
ये सच है
क्योकिं जीवन में कई बार
सपनों को छोड़ना पड़ता है
जहाँ कुछ संभावना न हो
वहां भी सृजन की आशा से
पंख को मोड़ना पड़ता है ।
आपके हुनर को आपकी
गल्ती बता दी जाती है
आप किसी लायक हैं ही नहीं
ऐसा बार बार बोलकर जाने
कितनी लड़कियाँ बेहुनर बना
दी जाती हैं ।
जिधर देखो बस श......की
उंगली होती है ।
मरना आसान है और जिंदगी मुश्किल
ये हर औरत बचपन में सीख
जाती है
पर वक्त की मांग है लड़कों को भी
ये सीखलायें
वरना ...सबकुछ चुटकियों में
खत्म हो जायेगा ।
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जिस घर को औरत जद्दोजहद
कर पाती है
अगले ही पल शान से पति के नाम
की तख्ती
उसके आगे लगवाती है ।-
जिस घर को औरत पति से
जद्दोजहद कर पाती है
सिर पर अपनी अदद छत हो
हर इल्जाम हंसते -हंसते
जिसके लिये निभा जाती है
चाभियाॅ मिलने पर
घर के आगे हमनवा की
तख्ती शान से लगवाती है ।
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हर चीज़ की बराबरी हो गयी
काम हो या बुद्धी
फिर गर्भावस्था की साल भर
की दुश्वारियां सिर्फ औरत के
हिस्से क्यों आनी चाहिए
पर्सूतिगृह की कुछ चीखें
मर्दों को जरूर मिलना चाहिए ,
माहवारी दे कर थोड़ी बहानेवाजी
का अनुभव उन्हें मिलना बेहद
ज़रूरी है ।
क्योंकि "हर औरत काम के डर से '
माहवारी का बहाना बनाने का
इल्जाम अपने सिर लिये घूम रही है ।-
वुराई की संगति में रहकर
खुद की अच्छाई पर भी
शक होने लगता है ।-
हम इतने बनावटी होते
जा रहे हैं कि हमने
कृत्रिम बुद्धि बना ली ,
बन्द कमरे में बैठकर अकेले
बड़े-बड़े अविष्कार कर लिये
लेकिन रिश्ते निभाने की नियत
और आदमीयत कहीं खत़्म न
हो जाये
इसपर चर्चा कोई नहीं कर रहा।
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स्त्रियाँ सीखतीं हैं माँ से
पर उससे भी अधिक -
सीखतीं हैं बड़ी भाभी और
दीदी से
जीवन में सीखा हुआ पसरता
रहता है धीरे -धीरे ।
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