पेड़ की पत्तियों में बसी एक जिंदगी,
टहनियों से निकले कुछ अरमान लिए,
हरी-भरी रहे जिंदगी उनके, बस इतना-सा ही ख्वाब लिए,
आस-पास की टहनियों,पत्तियों और मिट्टी से दोस्ती कर एक समाज बनाए,
हमेशा साथ रहने की न जाने कितने असूल बनाए,
बसंत के महीनों में उनके रंग खुशहाली से हरे हो गए,
हवा की तरंगों की धुन पर वे नृत्य करना शुरू कर दिए,
आंधी-तूफान भी उनके हौसलों के सामने नतमस्तक हो गए,
किंतु कब तक टहनियां उनकी भार उठाते,
मिट्टी की पकड़ भी अब ढीली पड़ गए,
ग्रीष्म के महीनों में सूरज की तपीस ने पहले उनके रंग उड़ाए,
फिर आंधियों ने उनका जड़ उखाड़े,
हवा के सहारे पत्तियों ने अपना अंतिम ठिकाना ढूंढे,
और मिट्टी में मिलकर जिंदगी के नए चक्र में अपनी कदम बढ़ाए।
BY-RAHUL GUPTA
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Due to impact of Covid , Behavioral Attitude of the people is changing not only for precautioning health but also for relatives, looking like we are marching towards individualism .
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जाया कर दिया वक्त रिश्तों को समझते-समझते ,
जब वाकीफ हुआ तो वो रिश्ते ही जाया निकले।-
Most of the people think that their outlook towards moral suggestions for others, always be 'Right', not mere be 'Good'.
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आज़ भी वो पल याद है मुझे,
जब तुम मेरी आंखों की तारा हुआ करती थी,
जगमगाती रौशनी के चादर में तेरी हर बुराईयां छिप जाती थी,
तेरी वो सरल स्वभाव किसी की भी जीवन में सादगी का प्रतीक छोड़ जाती थी,
तेरी उस मुस्कान सी चेहरे को देखकर कितनी कलियां खिल उठती थीं,
जब कांटों से भरे रास्ते भी फूलों की सेज़ लगा करती थी....
एक वक्त वह भी था जब मुझे आसमान में तारे सजे हुए लगते थे,
और आज़ यह आलम है कि तारों को बिखरे हुए पाए हमने....
कुछ दूर रहने पर रिश्ते तारों की तरह नज़दीक लगते थे,
और अब जो पास आए तो इन तारों के बीच की बढ़ती फासले देखे हमने....
पहले लगता था की आसमान खुशियों की नीली चादर ओढ़े है,
पर जब थोड़ी अंदर झांककर देखा तो शोक से भरी काली चादर से ढका पाया हमने,
इस तरह रीति रिवाजों से गुथी कायनात में खुद को एक टूटा हुआ तारा पाया हमने...
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आजकल के रिश्ते mobile app की तरह हो गए हैं,वक्त-वक्त पर अपडेट मांगा करते हैं, अगर देर हुई तो रिश्ते अपने आप ही uninstall हो जाते हैं।
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इश्क,अब अश्क बन गया तो क्या हुआ,
बस एक अक्षर ही तो बदली है,अहसास तो नहीं,
पहले दिल में था, अब आंखों पर ठहर गया तो क्या हुआ,
बस रहने की जगह बदली है,मुझसे अलग तो नहीं,
सुना था लोग बदल जाते हैं,एक तू बदल गई तो क्या हुआ,
बस ज़रा-सी उम्मीदें टूटी हैं, पर मैं तो नहीं,
यादों के मेले में मुझे तन्हा छोड़ गए तो क्या हुआ,
बस हमारी यादों का सिलसिला ही तो है, कोई युग तो नहीं,
माना कि तेरे जाने से खुशियां रूठ गई मुझसे तो क्या हुआ,
बस खुश रहने कि एक कड़ी ही तो टूटी है,खुश रहने का केवल तू ही एक जरिया तो नहीं,
माना कि तू एक स्वप्न बनकर ही रह गई तो क्या हुआ,
बस एक स्वप्न ही तो थी, हकीक़त तो नहीं,
आज़ तेरे ज़ेहन में कोई और बस गया तो क्या हुआ,
बस वो एक शख़्स ही तो है,मेरे जैसा तो नहीं....
By-Akash Gupta.
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Someone told about me that I am not a good person.I replied that let me finish your work.
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Assimilation and assassination of character is like diluting your own identity.
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