Gunjan Shree   (Gunjan Shree)
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मैं जो हूँ उसको बचाना चाहता हूँ
आ तुझे मैं गुनगुनाना चाहता हूँ
Joined 22 March 2017


मैं जो हूँ उसको बचाना चाहता हूँ
आ तुझे मैं गुनगुनाना चाहता हूँ
Joined 22 March 2017
21 SEP 2023 AT 7:18

जहाँ तक यथार्थवाद का प्रश्न है। कविता में यथार्थवाद से मुझे नफ़रत है। कविता के लिए न तो अतियथार्थवादी होना ज़रूरी है न अर्धयथार्थवादी। वैसे, वह चाहें तो प्रतियथार्थवादी(अर्थात् यथार्थवाद-विरोधी) हो सकती है। वह यथार्थवाद-विरोधी है तो अच्छी तरह सोच-समझकर या बिना सोचे-समझे भी, फिर भी वह अन्ततः कविता है।

— पाब्लो नेरुदा
(कविता एक पेशा है/मेमॉर्स)

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19 AUG 2023 AT 11:39

…नागपंचमी-मधुश्रावणी पूजैत बेटी-धीक
आँचर मे गाँथल मनोरथक महासागर,
आम-जाम सँ गमकैत-किलकैत ल'ग-पास,
ह'रक भीठ धयने
साल भरिक मनोरथ पूर करबाक चिंता सँ
हुमरैत एकटा मोन…

(कागत सँ फारकति पबैत सौन्दर्यबोध — गुंजन श्री)

#काव्यांश

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16 MAY 2020 AT 10:46

हम जखन
अपन घबाह मोन-प्राणकेँ अंगेजने
गछाड़ने रहैत छी अपनाकेँ
अप्पन एकजनियाँ ओछाओनमे
तखन सबसँ बेसी जे मोन पड़ैत अछि
से
अहाँ त' ने छी ?

- गुंजन श्री
(तरहत्थी पर समय)

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14 MAY 2020 AT 14:41

हमारे दरमयाँ जो है वो एक गुज़रा हुआ कल था
मगर क्यों वो हरेक लम्हा फ़ना होने से डरता है

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29 MAR 2020 AT 12:48

डॉ. कमल मोहन चुन्नू


सदिखन सजल साजल रही वनहरित फूल अमार सन
हँसिते रहू एहिना सदति , टटका हवाक दुलार सन

ओ राति, रातिक थिर जगरना, दुर्दिनक चिर टकटकी
ओहि आँखिमे दुनियाँ भरिक सपनाक सांठब भार सन

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6 MAR 2020 AT 16:04

कोन बसात सिहकलै जनमारा पछबा,
गामक गाम रोगाह लगैए, बाजू नै ?

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20 FEB 2020 AT 13:23

ये और बात है कि तुमको शिकायत है मुझसे
मगर मैंने जब तक तुम्हें चाहा जी भरके चाहा

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15 FEB 2020 AT 8:52

मेरे घर भी कभी आया जाया करो
पास बैठो समय कुछ बिताया करो

देखो खुल के ज़रा आसमां की तरफ
नूर की बारिशों में नहाया करो

बस सरोकार अपना ना टूटे कभी
प्यार कर ना सको तो सताया करो

ये तकल्लुफ में लिपटी अदा छोड़ दो
बेतकल्लुफ ही मिलने को आया करो

तुम मेरे सामने जो ये खामोश हो
मेरे होंठो पे तुम कंपकपाया करो

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19 OCT 2019 AT 16:54

काल्हि तक जे छल पसारैत नित क्षितिज पर कालिमा,
आइ बाजल से चिकरि क' हम सुरुजक पोर छी

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21 SEP 2019 AT 0:25

वो लम्हा जो दरम्यां था गुज़र गया आख़िर
मैं जागता हूँ तेरे आँखों के नींद की ख़ातिर

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