इस ग्रीष्म कालीन जैसे जीवन में मेरे
पेड़ की छांव से मिलने वाली आराम
तृष्णा मिटाती हुई कलसी की ठंडी पानी
और शाम की मंद मंद चलती हवा की तरह
तुम्हारा प्रेम मेरे जीवन में जैसे मानों
बरखा के आगमन की अनुभूति कराती है
और मेरे मन में तुम्हारी उपस्थिति
सूर्य के तपन जैसे पीड़ाओं से जले मन को
लू के जैसे कष्टों के चपेट में आए तन को
और बिरह के तृष्णा में खोए दो नयन को
बरखा में भीगा कर हमेशा शांत कर देती है
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घर के दर औ दीवार
आंगन की शजर है
माँ जो है जीवन में
खुशियों की डगर है-
हुस्न के दीवानों के आगे
मैं वफा का जिक्र क्या करता
हैं सौ ग़म जहां ज़माने में
वहाँ मैं मेरी फिक्र क्या करता
जुल्म औ सितम के आगे क्या
आगे तो है मौत का मंजर
आशिक गर न मरता तो क्या करता ?
आशिक गर न मरता तो बगावत करता
आशिक गर न मरता तो अदावत करता
आशिक गर न मरता तो जीत लेता जहान अपना
जीत जानें के बाद जालिमों पर इनायत करता
अपने देखे हुए ख्वाब की हिफाज़त करता
और इसके बाद उसी के खातिर
बस इबादत करता ।।।।।।।।-
_तल्खियां_
हम पे ये गुजरी
हम पे ऐसा बीता
ऐसा कहने वालों ने
दुनिया में आखिर क्या ही देखा
दुनिया के अनगिनत ये जो लोग हैं
एक दूसरे की खुशी नहीं देखी
किसी को मुस्कुराते नहीं देखा
सब ने अपने आंसू देखे
सब ने अपने ग़म को दिखाया
सब ने अपने दर्द को याद रखा
सहेज कर रखा और कई बार रोना चाहा
कैसी ने मुस्कुराते पलों को याद नहीं किया
किसी ने किसी को खुशी के पलो में न पाया
सभी ने ग़मों को दिल पर ले लिया
किसी ने भी किसी के खुशी में जश्न नहीं मनाया
और कईयों ने खुशियों की नुमाइश तक नहीं की
और हम जैसों ने तो
ताउम्र के लिए गमों को आजाद कर के
हमेशा के लिए खुशियों को कैद कर दिया
जिंदगी के चंद बुरे लम्हों के खातिर ।।।।
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टूटे दिल को जिंदगी ने औजार कर दिया
इंतजार ने हम को हमीं से बेजार कर दिया
राह में गुल होते गर तू भी साथ होता कभी
तेरे गैरमौजूदगी ने गुलों को खार कर दिया
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दुनिया से खुश रहना
दुनिया में खुश रहना
एक जैसे लग रहे इन दोनों बातों में बहुत फर्क है
पहले वाक्य में दुनिया जो है उस दुनिया में कई लोग हैं
उन लोगों से हमें कितना ही खुशी मिल जाएगी
या उनसे हमेशा कितना ही सुख प्राप्त हो जाएगा
दूसरे वाक्य में जो दुनिया है ये हमारी अपनी दुनिया है
और यहां आपके अपने हैं और आप ही अपनी दुनिया हैं
इस दुनिया में खुश रहना आसान है
क्यों कि इस दुनिया में खुशी जो है
वो खुद के प्रयास या चाहने से आती है
और ये अपने मन से ही पनपती है
वो किसी के ऊपर निर्भर तो नहीं करती
इस लिए दुनिया से हमें खुशी मिले न मिले
अपने दुनिया में हमे खुश रहना आना चाहिए-
जहां समन्दर से आकर दरिया मिलता हो
जहां जीने का कोई तो जरिया मिलता हो
तेरा मेरा मिलना भी कुछ ऐसी जगह होगा
जहां के रहने वालों का नजरिया मिलता हो-
जब अपने ही खिलाफ हो जाते हैं
तो फिर कभी न माफ हो पाते हैं ।
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मैंने देखा है खुद को अपने साथ चलते
मैंने देखा है खुद को खुद से बात करते
मैंने देखा है खुद ही को जिंदगी से लड़ते
नहीं देखा किसी को कभी संघर्ष से डरते-