मासूमियत से भरी ,,,,,,,उस हाँ....... ना में
कहीं थी झिझक,,,,,,,कहीं हया का पहरा था.....
उसने छुआ था पहले-पहल,,,,,,,,,एहसास वो
खुद में गज़ब का था........
नज़रें मिलाना,,,,,, नामुमकिन हो चला था... लबों पर
घबराहट का बसेरा था,,,,,,,,,
उस शख़्स ने फिर भी था,,,,,,,,हक़ अपना जताया
जानता था,,,,,,भेद ये सुनहरा था........
बारिश की बूँदों सी वो,,,,,,,सिर्फ उसके लिए बनी है
आज ये मुहब्बत से भरे,,,,, बादलों का अँधेरा था....
मन में क्या था उसके,,,,,,,,,आँखें जता रहीं थी
झूठी ख़ूबसूरत सी ना ,,,,ना के बीच,,,,,
हाँ ने राज़ खोला था.......उफ्फ़ !!!!! हर राज़ खोला था........
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