कभी कभी दिमाग़ की चीजें जुबा पर उतर आती हैं
तोह जिंदगी की कुछ हँसी को कम कर जाती हैं !
सोच - विचार का समय कहाँ
आत्मा flow Flow में बह जाती हैं !
न अनुमान लगा पाती हैं !
बस अनुभव सीखा देती हैं !
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शांत भरी वादियों में
मन उतावला सा हो गया !
विचारों के एक पन्ने में
मन लापता सा हो गया !
रास्तें अनेक नज़रो में
मन खामखा सा हो गया !
जिंदगी के जाल में
मन दुखी सा हो गया !-
पटर पटर करने वाली
वोह लड़की कहाँ गुम है !
सब के दुख में दुखी होने वाली
वोह लड़की कहाँ गुम है !
सबकों ख़ुद में रंगने वाली
सबकों अपना कहने वाली
क़भी ग़लत न बोलने वाली
वोह लड़की कहाँ गुम है !
ख़ुद से ख़ुद में मग्न रहने वाली
अपनो को वोह पराया न कहने वाली
सबके साथ रँगमगा जाने वाली
वोह लड़की कहाँ गुम है !
पल भर में हँसाने वाली
पलभर में नाराज हो जाने वाली
वोह लड़की कहाँ गुम सी हैं !
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कभी कुछ कर जाने की चाह
तोह कभी बर्बादी जैसा दौर !
कभी सबकुछ पा लेने की आंश
तोह कभी नफ़रत जैसे इरादे!
कभी शांत सा मन
तोह कभी हलचल जैसा मैं !
कभी बिना सोच विचार की ज़िन्दगी
तोह कभी सन्नाटे जैसा जाम !
समझ भी नही अब
कहाँ ख़ुशी कहाँ गम का मान !-
कैसे बया करूँ
येह नफ़रत की धुंध !
ख़ुद कठोर बनकर
फ़िर पिघल सी जाती हूँ !
सोचा हुआ कर जाना
मुश्किल सा हो गया
मैं न जानू मुझे क्या हो गया ... !
Emotion , प्यार , घृणा
है भी , या , नही भी
येह भी अब समझ से परे जैसा हो गया !!-
लिख़ने का कुछ मन सा है
कुछ शब्दों को खोलने का दिल सा है !
लेकिन थम गईं हैं येह कलम
कुछ शब्दों को निखारने में !
अब करें भी तोह क्या ?
कुछ शब्द अब मौन से है !
चल पड़ी है बारात इनकी
घर मिले जहाँ "वहाँ थोड़ी महफूज़ सी हैं " !
लेकिन येह कलम
अब 🤔
विराम सी क्यू हैं ।?
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क्या लेना क्या देना
क्या मेरा क्या तेरा
ऐसे नही बन पाते हैं रिश्ते !!
जो मेरा वो तेरा
जो तेरा वो मेरा
हां यही बना जाते हैं रिश्ते !!
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इतनी चालाकियां नही सिखी
कि रंग बदल दूँ !!
इतनी नफ़रत भी नही सिखी
कि बोलना छोड़ दूं !!
इतना बड़पन भी नही सीखा
कि पलट के जवान दूँ !!
बस सिख लिया ख़ुद को मज़बूत करना
अच्छाइयों के शिखर के साथ वाकिफ़ होना !!-
👉चलो करूँ मैं चंद शब्दों में बयां ख़ुद को ही 👈
हस्ती बहत हूँ मैं
क्या तुम इस छुपी गम का राज समझ पाओगें क्या ?
ख़ुद में मग्न रहती हूँ
क्या तुम इसके पीछे की कहानी जान पाओगें क्या ?
बोलने वाली मशीन की तरह पट पट करते रहती हूं
क्या तुम बिन बताएं बातें समझ जाओगे क्या ?
कभी कभी गुस्सा बहत आता है
क्या तुम इस गुस्से में समा जाओगे क्या ?
ना शब्द बहत कहती हूँ
क्या तुम इस ना का राज जान पाओगें क्या ?
आँखे बोलती है मेरी
क्या बोलती हैं इसे जान पाओगें क्या ?
यही चंद शब्द है जिंदगी के
क्या तुम औऱ शब्दों को पढ़ पाओगें क्या ?
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चलो थोड़ा mood off कर लेते हैं
ख़ुद से चार बातें पूछ लेते हैं !
सवालों के भंडारण का वजन कम कर देते हैं
थोड़ा मन का बोझ जुबा से बया कर लेते हैं !
ख़ुद से ख़ुद में डूब जाते हैं
दुनियां को नजरों से हटा देते हैं !
चलो थोड़ा सा mood off कर लेते हैं
मन के बोझ का ख़ुलासा भी कर देते हैं !
कुछ न कुछ नजर तोह आएगा ही
शांत मन का एहसास होगा ही !-