चाहत ये है कि हर रात सोने से पहले मैं उसे किताब पढ़ कर सुनाऊँ, सुनते-सुनते मेरे चहरे के भावों को वो भी महसूस करे, मेरी मुस्कुराहट पर हँसे और मेरे रोने पर उसकी पलकें भी भीग जाए।
हमने सदैव पुरुषों के प्रेम को महिलाओं के प्रेम के मुकाबले कम आँका है। क्या ये प्रेम में पड़े पुरुषों के साथ गलत नहीं हुआ? क्या इसे ही साहित्यिक अन्याय कहते हैं?