गुमनाम तुम अपनी परेसानियों में वबाल दिखते हो
जब भी लिखते हो गम अपना वाकई कमाल लिखते हो
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रंग दो मुझे उस रंग में
जिसमे कोई रंग तंग ना हो।
बांधो ऐसी प्रीत की धागे
जिस धागे में कोई जंग न हो।
शिव प्रेम में काशी झूमा
मोह प्रेम में राधा
प्रेम की ऐसी रीत है अपनी
तुझ बीन हूँ मैं आधा
सर पर जिसके चंद्र विराजे
जो पर्वत के राजा
ग्रीवा में सर्प है साजा
हाथ में डमरू बाजा
कैसे भोले मैं समझाऊं
तुम भी मेरा जीवन है सादा-
इश्क़ में हमे जुदाई मिल जाए
हम चाहते ही नहीं कि मेहबूब से बेवफाई मिल जाए
हुनर रखते हैं खुद को गुमनाम रखने का
पर हम चाहते ही नहीं कि नाम-ए-खुदाई मिल जाए-
एक रात वो गया था जहाँ बात रोक के
अब तक रुका हुआ हूँ वहीं रात रोक के
इश्क़-ए-गुमनाम सायद आए मेरे जनाजे में
इस ख़्वाब में कर रहा हूं इंतज़ार सांस रोक के-
मर गया गुमनाम उसका इशारा देख कर
अभी लौट कर आया था अपना जनाजा देख कर
गुमनाम-ए-मेहबूब हमबिस्तर हुई थी किसी गैर के साथ
गुमनाम-ए-रूह ज़ुदा हुआ ये नज़ारा देख कर-
बड़े दिनों बाद उसका ख्याल आया।
बड़े ही सिद्दत्त से मेरे ज़ुबा पर उसका नाम आया।
फिर सोचने लगा की छोड़ कर क्यू चली गई थी वो मुझे?
फिर जा कर उस बेवफा की बेवफाई मुझको याद आया।
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गुमनाम रक़्स-ए-वहशत से बिगाड़ा है तबियत
हिज्र-ए-रात से अब किनारा क्यू नहीं करते
मकान-ए-दवा का करते हो कारोबार
तो तुम इश्क़-ए-ज़ख़्म पाए आशिको का शिफा क्यू नही रखते
मुक़तदी की बातो पर करते हो तुम अफ़सोस
वो इतने ही अच्छे है तो एमामत क्यू नहीं करते
कुल्लियात-ए-ज़ख़्म को अगर कर लिए हो मुरत्तब
तो गुमनाम फिर तुम खुद को खुदा क्यू नहीं केहते-
खुद को संभालने का हुनर रखते है
रकीबो के दिलो में ठहरने का सबर रखते है
अपनो के हाथो दिलों पर ज़ख्म पाए बैठे है
यार हम तो वो है जो बेहद करीब आ कर मुकरने का हुनर रखते हैं-
तेरी माथे की बिंदिया मानो जैसे नज़्म सी हो।
और मुझे इस चाहत से बस शिफा मिल जाए।।
आ कर तू मुझे गले लगाए।
और इस फ़कीर को खुदा दिख जाए।।-
पढ़ कर मैसेज पुराने हम दोनो की फिर मै बीते रात को बहुत ही रोया हूं।
कर के गुफ्तगू तेरी ख़ुद से खुद ही खुद से ही लिपट कर सोया हूं।।-