गुमनाम-ए-इश्क़-ए-निगाहों से बचा लो मुझे
मेरे कत्ल करने को वो आंखों में सुरमे लगाने लगी है
बड़ी ही मुश्किल से संभाला था खुद
यारो वो तो फिर से देख कर मुस्कुराने लगी है-
लबों को चूम कर लहू तक जाऊ
तेरे बदन का हर एक कतरा अपने होंठो से लगाऊं
जहा इंकार हो वहा तक जाऊ
अपनी उंगलियों को तेरे जुबां पर लगाऊं
तेरा इंकार इज़हार जैसा
तेरे जिस्म से लिपटा कपड़ा एक बंद इख्तियार जैसा
एक एक कर के उनको खोलता जाऊ
जी करता है हर पल उनको पढ़ता जाऊ, पढ़ता जाऊ-
तुम्हारे माथे को चूमू जैसे चांद कोई
होंठो को पीयू जैसे ज़ाम कोई
तिनका तिनका कर मै नीचे उतरू
सीने को तेरे मैं अपने दांतो से पकडू
बेशर्मी की हदों को पार कर के
चखते जाऊ तेरे बदन की गर्मी
लफ्जों में ही हो बस नर्मी
करनी है मुझे ऐसी बेशर्मी-
साजीसो से भरा वो मंज़र याद है
मेहबूब की निगाहों का वो खंजर याद है
बड़ी ही खामोशी से किया था जो कत्ल उसने
मुझे गुमनाम के आंखों का वो समंदर याद है
गुमनाम-ए-इश्क़ गुस्ताखी था महज़
आज भी वो लगन का महीना नवंबर याद है-
तुम्हें देखने का जुनून और भी गहरा होता हैं.!
जब तुम्हारे चेहरे पर बालों का पहरा होता हैं.!!-
इज़्जत से होने वाले डर है पिता
बीन कुछ कहे करने वाले प्यार है पिता
बीन दीवार के दिखते छत है पिता
बीन पैसों के भी दिखने वाले धन है पिता
बचपन की वो उंगलियों वाले अवलंबन है पिता
जवानी में कंधों पर रखने वाले हाथ वो बल है पिता
भविष्य के अंधकारो में प्रकाशित प्रकाश है पिता
मेरे जीवन की कहानी लिखने वाले वो भगवान है पिता-
दीवार नहीं संसार हूँ
हूं मैं स्तंभ सा खड़ा
रिश्तों के बीच का
मैं दरार हूं।
कही आस्था
तो कही अभिश्राप हूं।
इज्जत का दायरा
तो कही कलंक का नाम हूं।
कभी फिल्म, बीमारी
तो कभी चुनाव प्रचार का स्थान हूं।
लापता का मोहर टंगा
लगता है मैं ही संसार हूं।
दो इंसानी परिंदों का फासला
एक बंटवारे का नाम हूं।
तमाम उलझनों से बना
मैं उस एक ईंट का दिवार हूं।
हां मैं ही संसार हूँ।
मैं ही वो दीवार हूं।-
तेरी निगाहों से मिलने वाले!
मर गए वो लोग गुमनाम लिखने वाले!!
कुछ तो सिखा होता सलिखा बेवफाई करने का!
शर्मशार हो गए तेरे बाद बेवफाई करने वाले!!-
जननी
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हां वो जननी है
मृदुलता जिसकी बातों में
जिसकी हाथों में रिश्तों की बेडी हैं
हां वो जननी है
लज्जा से लिपटा हो जिसका तन
जिसके हृदय में करुणा की थैली है
हां वो जननी है
है रूप अनेक साथी, संगिनी, माता या बहिनि
जो दुखो की हरनी है
हां वो जननी है
डाट में जिसके लाड छिपा
जो धरातल की वैतरणी है
हां वो जननी है
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