गुमनाम पण्डित   (गुमनाम✍☕🚬)
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क्या लिखूँ अपने बारे में खुद के शब्दों मे बयां जाऊँ शायद वो शक्स नहीं मैं
Joined 5 July 2020


क्या लिखूँ अपने बारे में खुद के शब्दों मे बयां जाऊँ शायद वो शक्स नहीं मैं
Joined 5 July 2020

गुमनामी में खो से गए लगते हो
तुम तो जिंदगी के बीमार लगते हो।।

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चंद लम्हे ही काफी होते है सालों के रिश्तों को अनजान बनाने के लिए

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आज भीड़ में खड़े होकर अपने आप से बातें की
पता चला कि कितने अकेले हैं हम

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गुमनाम थे तो बेहतर था
तेरे शहर में अब बदनाम हो गए हैं

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वो आए कब्र पर मेरी मेरे रकीब के साथ
कौन कहता है मुसलमान जलाये नहीं जाते मरने के बाद

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तेरी तारीफों के कसीदे तो मैं भी पढ़ देता
पर यूँ आँखों का बोलना मुझे अच्छा लगता है

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मुझसे असहज तुम होना नहीं
अपनी हदों को भूल जाऊँ
इतना बेग़ैरत मैं नहीं

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अब नहीं मन होता तुमसे पूछने का कि कब आओगे

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मंज़िल दिख न रही,
ये कैसे बादल छटते ही नहीं

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समय जब साथ नहीं होता तो कोई अपना नहीं लगता

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