हम स्वतंत्र भारत के वासी हैं
पर स्वतंत्र ना हमारी नारी है,
आज भी आगे हैवानों के हारी है।
नहीं उसकी कोई सुरक्षा है,
क्या यही,
भारत मां की आज़ादी है।
आंतकवाद के बीजों से
अब भी छुटकारा ना मिल पाया,
पनप गया जेहाद का रावण
उसने कितने मासूमों को खाया।
जाति रंग का भेद अभी भी
गरीब ना ऊपर उठ पाया,
युवा रहे बेरोजगार,
ना उनको रोजगार मिल पाया
पेपर लीक के किस्सों ने,
कितनों को फांसी पर लटकाया
किसान को अब भी
ना फ़सल का दाम है मिल पाया,
77 साल बाद भी
क्या हमने अपने को आज़ाद पाया।
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बस इतना समझ लीजिए,
खरगोशों सी दुनिया है,
कछुआ बनकर जीत जाना है।
ये रात बड़ी विचित्र है,
आसमान पे जो चित्र है,
दिखलाता वो चरित्र है,
गंगा-सा पवित्र है,
बिखरा तारों का इत्र है,
ये रात बड़ी विचित्र है।-
हालात कुछ ऐसे हुए कि
निभा न सके
पर
इश्क़ तो किया था
तुमने भी पीछे मुड़कर न देखा
क्या इश्क़ ही किया था ......-
ये जो तेरा खिंचाव है मेरी तरफ़
खींच रहा है मुझे तेरी तरफ़
लेकिन,
सशंकित हूं कि
कहीं तू भी तो सबके जैसा नहीं
जो खेलना चाहता हो मेरी चाहत से
छोड़ के जाना चाहता हो किसी और के पास,
गर ऐसा हुआ तो
टूट जाऊंगी मैं
फिर ना किसी पर भरोसा कर पाऊंगी मैं .....-
हर दिल को आवाज़ मिल जाएगी
अगर दर्द बोलने लगे
हर मर्ज़ को दवा मिल जाएगी
अगर दर्द बोलने लगे
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एहसास है दिल को तेरे आस पास होने का,
कमबख्त, दिमाग की बात मानता ही नहीं।-
कुछ टूटे हुए सपनों को जोड़ता है,
कुछ जुड़े हुए सपनों को तोड़ता है,
कभी दिन का उजाला होता है यहां
तो कभी रात का घनघोर अंधेरा,
कभी पंछी चहचहाते हैं यहां
तो कभी मौत-सा सन्नाटा होता है यहां,
ये शहर ऐसा है,
ये शहर ऐसा ही है।-
रात है या,
तेरी जुल्फों की घटा छाई है,
तू खुद है या,
तेरी याद मेरे पास आई है।-
कभी नज़र तो मिलाया करो,
हम उतने भी बुरे नहीं
जितना तुम्हें नज़र आते हैं ।
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