Gulzar Khan   ("GK Gulzar")
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I need not to express my views
Emotions do this work very peacefully....
Joined 20 May 2020


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11 MAR AT 11:15

जे पिंड दे यार मिलने दे ओ हंसना हसाना नईं हुंदा ।
ते जे दे अहमियत पैसे नू ओ दोस्ताना दोस्ताना नईं हुंदा।
ओ मिठिया गल्ला करके आप नू मतलब रक्खे,
वो अपड़ा यार पुराना नईं हुंदा।।

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18 FEB 2023 AT 7:19

अजब खेल है गज़ब किरदार हैं।
एक हटा तो दूसरा तैयार है।
परिणाम खेल के जंग से कुछ कम नहीं,
चोटें दिखती नहीं पर असरदार हैं।।

नही पता सलीका सबको खेलने का,
कुछ हल्के फुल्के तो कुछ बेशुमार हैं।

सब नहीं खेलते बाज सा होकर,
कुछ को खेलने का खुमार है।

कुछ को जज़्बा कुछ हैं आदि,
कुछ ड्रग्स लेकर के बीमार हैं।

हम भी खेले हैं इस खेल को,
लोग न जाने क्यूं कहते प्यार हैं।

सबकुछ अदा किया था हमने ,
फिर भी निकले हम बेज़ार हैं।

फिर भी हम कहते हैं तुम खेलो,
देखना है लोग कितने खबरदार हैं।

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5 FEB 2023 AT 12:47

सदके में उसके सिफा मिलती है।
छेड़ू उसे तो खफा मिलती है।
आदतन हम एक से ही हैं,
तभी बावफा से बफा मिलती है।

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1 JAN 2023 AT 18:08

मैं लिखता नहीं समंदर शब्दों में अपने,
न जाने क्यों लोग इनमें गहराइयां ढूंढ लेते हैं।।

मैं कहता नहीं लोगों से बारे में उनके,
न जाने क्यों वो इनमें जवाब ढूंढ लेते हैं।।

महफूज़ रखता हूं मैं खुदको सदा,
दुनियां के ज़ालिम अज़ाब लोगो से,

मैं कहता हूं सच सबसे हर्फे सदा,
न जाने क्यों वो मुझे दुश्मन मान लेते हैं।।

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31 DEC 2022 AT 23:05

सर्दी लिपट रही है लिबास की तरह।
मिजाज़ बदल रहा है आवो हवा की तरह।
हर पन को समेटता है बेरुख है कितना,
मौसम ये बदल रहा है बचपन की तरह।।

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21 NOV 2022 AT 19:18

कुछ है नही जो कर सके।
कुछ है नही जो पा सके।
तलाश है कि वो मिले मुझे,
तलाशने पर भी वो आ न सके।।

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19 OCT 2022 AT 17:50

अजीब सी ये बेचैनी।
अजीब से ये फांसले।
मिल जाए मुझे सुकूं कोई,
जो घर मेरा वो बांध ले।।
भाग दौड़ है ज़िंदगी।
भाग दौड़ भरे ये रास्ते।
न मिलता कोई मेरा मुझे,
जो परिवार जैसा साथ दे।।
खींच तान है हर जगह।
ये जल्दबाजी सब तरफ।
आवो हवा मे है जहर,
न गांव जैसी बात है।
दिन तो ठहरा दिन यहां।
यहां रात भी न रात है।।
हर तरफ सहसा धुआं।
बस ख्वाइशों की बात है।।

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18 OCT 2022 AT 13:31

वाजिब है अगर किसी का किसी से मिलना।
थोड़े वक्त बाद फिर होठों का सिलना।
दस्तके होती है दिलों पर जो उनके,
चेहरे पर चमक न उजियारे का खिलना।।

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26 AUG 2022 AT 10:00

बेबस थे हम हां थी थोड़ी लाचारी।
बातें तुम्हारी मीठी थी और लगती थी प्यारी।
जब से हटा है ना नक़ाब ए पोश दर से,
क्या कहते हो जरूरत अब नहीं है तुम्हारी।

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6 AUG 2022 AT 8:05

मैं लिखता हूं तुम्हे तो सावन सा आ जाता है।
वो जो छुपा हुआ है ना,
क्या कहते हैं उसे इश्क़
हां उभरकर यहीं पे आता है।

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