Gulshan Kumar Singh   (kr. सूफियाना)
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Dancer of words
Joined 30 December 2017


Dancer of words
Joined 30 December 2017
18 DEC 2024 AT 20:41

रस्म-ए-इश्क़

रस्म-ए-इश्क़ को हमने कुछ यूँ निभाया ख़ैर,
टूटे दिल को समेटकर बोले ख़ुश रहना मेरे बग़ैर।

ग़लत लग रहा होगा, पर शायद सही ही होगी,
उन्होंने हाथ छोड़ा है, कोई मजबूरी रही होगी।

मुसलसल ज़ख़्म देकर वो इश्क़ को ऐसे निभाती है,
कोई मालिन गुलशन में, क्यारियाँ जैसे बनाती है।

इश्क़ में परवाने ख़ुद को शमा में जलाते रहते हैं,
और आशिक़ इश्क़ में यूँ ही मात खाते रहते हैं।

“मैं” नहीं हूँ, कोई भी उनसे ख़फ़ा न रहे,
इश्क़ को गाली न दें, उन्हें बेवफ़ा न कहें।

ज़ख़्मों पे ज़ख़्म इश्क़ में खाना पड़ता है ,
रस्म-ए-इश्क़ को यूँ ही निभाना पड़ता है ।

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2 DEC 2024 AT 22:02

इश्क़ में जो उसने महबूब को ख़ुदा कर लिया
जो महबूब चला गया तो बस ख़ुदा रह गया ।

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23 NOV 2024 AT 2:19

इश्क़ में एक ही शर्त थी, महबूब या मोहब्बत ?
जन्होंने महबूब को चुना,
वो मोहब्बत से जुदा हो गए।
जिन्हें मोहब्बत ने चुना,
वो इश्क़ के ख़ुदा हो गए।

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12 NOV 2024 AT 21:48

“Love sees the dance, not the dancer.”

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3 SEP 2024 AT 22:18

इश्क़ के किताबों में अपना एक नज़्म जोड़ आऊंगा,
तेरे लिए इस ज़माने के सारे रस्मों को तोड़ जाऊंगा ।
अगर ख़बर भी हो मुझे ये है हमारी आख़िरी मुलाक़ात,
तब भी तुझे तेरी तहलीज तक बाइज्ज़त छोड़ आऊंगा ।

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13 AUG 2024 AT 18:35

वो मुड़ के भी नहीं देखते मुझे एक बार,
मेरे ख्यालों में उनके सिवा कोई और नहीं टिकता ।
कई ख़ामियाँ दिखती हैं उन्हें हम में,
हमें उनमें खूबियों के सिवा कुछ और नहीं दिखता ।।

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2 APR 2024 AT 17:11

मेरे क़िस्सों में तेरे सिवा कुछ भी नहीं,
तेरे क़िस्सों में मेरा ज़िक्र कुछ भी नहीं
तेरे नसीब में हो मेरी भी नसीबें,
मेरे नसीब में चाहिये मुझे कुछ भी नहीं

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16 MAR 2024 AT 20:17

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4 MAR 2024 AT 5:09

आपके प्रेम के काबिल हूँ, इसका कोई दावा नहीं करता,
पर मैं शीशे की तरह साफ हूँ, कोई छलावा नहीं करता ।
इश्क़ मुक़्कमल हो तो ख़ैर है, नहीं हो तो कोई गुरेज़ नहीं,
मैं बस इश्क़ करता हूँ, इश्क़ का कोई दिखावा नहीं करता ।

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3 DEC 2023 AT 17:58

तुम BJP की तरह मोहब्बत करके तो देखो
हम Congress सा डूब ना जाएँ तो कहना ।

#Politicalsatire

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