मेरे क़िस्सों में तेरे सिवा कुछ भी नहीं, तेरे क़िस्सों में मेरा ज़िक्र कुछ भी नहीं तेरे नसीब में हो मेरी भी नसीबें, मेरे नसीब में चाहिये मुझे कुछ भी नहीं
सालों से ख़ुद को आम समझ बैठा था मैं किसी की एक दस्तक ने मुझको कुछ ख़ास बना दिया मुझे बताया गया था शुरुआत से पूर्ण हूँ मैं किसी की मौजूदगी ने उस पूर्णता का आभास करा दिया
गुल-ए-गुलशन की हालत पे क्या कहा जाए, तबाही का ये मंजर कैसे बयाँ किया जाए । जिन बादलों से थी हमें बारिश की उम्मीद, वो तेज़ाब बरसा जाएँ तो क्या किया जाए ।