एक वरदान या अभिशाप, खुद की मेहनत या खैरात,
या है ये एक सफर जिसकी मंज़िल है बिल्कुल उलट,
किसी ने कहा है ये खुशबू, जिसको मिटा देना चाहे सब,
ज़िन्दगी क्या जीना है, या फिर है इक दिन मार जाना।
शायद हो एक किस्सा, जिसके अंत का किसी को नहीं पता,
कोई उलझन तो नहीं, जिसको इंसान समझ ना पाए,
या फिर हो यह निश्चल प्रेम, जिसे इंसान निभा ना पाए,
या फिर हो दया का नाम, जो किया जाए खुद की खातिर।
जो लोग नहीं समझते हैं बस वही जीए जाते हैं,
जिनको थोड़ी भी समझ हो तो, उनके लिए दुश्वार है जीना।
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