आज फिर से इन आंखों में अरसों बाद ये काजल लगा है,
आज फिर से इन कानों ने वो लम्बे झुमके पहने हैं,
आज मेरी पायल भी गीत गा रही थी,
वही हमारा वाला,
याद है ना?
आज मेने लाल रंग पहना है,
पसंद थी ना तुम्हारी,
बिंदिया आज भी वो काली जच रही है,
और अंगूठी वही जो तुमने दी थी,
याद है ना?
मौसम वही, शहर वही, गलियां वही,
जगह वही, मैं वही तुम नहीं,
चाय कड़क वो अदरक वाली,
वो कोने वाली कुर्सी आज भी खाली है,
याद है ना?
पूछ रहे थे तुम्हारे बारे में,
वो सफेद दाढ़ी वाले अंकल,
बारिश आई, छत ढूंढी, धूप निकली,
मैं बाहर, क्या जवाब देती,
कहते हैं कहां गया वो तुम्हारा गुमनाम साथी,
पूछे तुम उसे याद तो होना?-
ONE SIDED FRIENDSHIP
You freaking knew about
every veins my blood goes through,
i just knew when you bleeded,
You saw growth of
every inch of my nails,
I just knew when you cut nails out,
You knew every path of my falling tears,
I just knew when you smiled
after breakdown,
You knew me from dusk to dawn,
I just knew you as a night owl,
You knew about my
maturity immaturity,
I just always knew you as a grown up,
You knew you know all my secrets,
I just knew the surprises you kept.-
बेख्याली के उस दौर में
उसे यादों में मशगूल होते देखा है,
हां मैंने पाया है उसे,
भरी महफिल में भी अकेला,
अकेलेपन के उस सामा में,
मैंने देखा है उसे खुद में ही खोते,
हां मैंने जिया है,
उसकी उल्फत में रहने का नसीब,
उसको समेटते देखा है मैंने,
इज़तिरार मैं बखूबी खुद को,
पाया है उसकी आंखों में मैंने,
वह मुआतजा़ खुदा का,
उसकी जुल्फों का वह कायरा देखा है मैंने,
जहां जैर-ए-आब वो मैहर-ओ-माह भी है,
अदावत पर उतर जाते हैं कई,
हां मैंने कारजा़र से बाहर एक फरिश्ता उड़ता देखा है।
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खुद जागता था रातों में,
आदत थी जगाए रखने की,
साथ मांगता था ताउम्र का,
लगता है आदत ना थी वफाएं करने की,
लुटा देता था प्यार शुरुआत में,
शायद आदत थी फरमाइश करने की,
निभाने की कसमें खाता था,
मुमकिन है आदत थी एहसान करने की,
इकतितखाम पर कुछ यूं लाया
उस बेपनाह एक तरफा
मुहब्बत को,
लगता है आदत नहीं हुनर था उसमें,
हर दिन नया इश्क -ऐ-इज़हार करने की,
माफ़ कर देता था हर गलती को यूं ही,
शायद आदत थी गलतियां हजा़र करने की,
इश्क, मुहब्बत, प्यार, कुरबत, इबादत, उल्फत
महज़ शब्द थे उसके लिए,
शायद आदत थी कोशिशें हजा़र करने की,
पता नहीं क्यों शर्तें रखता था प्यार के नाम पर,
अब पता लगता है, उसकी आदत थी
प्यार को बजा़र करने की।-
तुम होते तो ये सावन भी भीगा होता,
तुम होते तो ये मौसम भी बदला होता,
तुम होते तो आंखें ना नम होती,
तुम होते तो ये व्यथा भी भ्रम होती,
तुम होते तो चाहत भी बेपनाह होती,
तुम होते तो नज़रन्दाजी़ भी गुनाह होती,
तुम होते तो हर रोज़ वो शाम होती,
तुम होते तो हर चाय की प्याली तुम्हारे नाम होती,
तुम होते तो तुम्हारे लिए उठती नज़र भी कमाल होती,
तुम होते तो वो मुस्कुराहट भी तुम्हारी गुलाम होती,
तुम होते तो रातों में सोती,
तुम होते तो ख्वाबों में खोती,
तुम होते तो हम होते,
तुम होते तो न गम होते,
तुम होते तो तुम हमारे होते,
तुम होते तो हम तुम्हारे होते,
अगर तुम होते तो तुम होते,
अगर तुम होते तो मैं होती- 2
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कुछ तुझ पर लिखूं तो शायरी बन जाए,
कुछ खुद पर लिखूं तो तू,
तू ज़िद करे जिसकी, दुआ वो मेरी हो जाए,
मैं मांगू इश्क खुदा से, ओर वो खुदा खुद हो जाए।-
एक कुर्सी बैठी है गलियारे में,
ना जाने किसका इंतज़ार करती है,
निगाहें रखते आते जाते पर,
जाने किसको तकती है,
सब लोगों ने खूब सोचा,
कहते,"जाने थक हार कर बैठी है",
जब जाना उसे करीब से ,
तो कहती वो गर्व से वहां सजी है,
कहती है किसी से प्यार किया था,
आज खुशी से बैठी हूं,
कोशिश पर भी ना मिला वो अलग बात है,
बस अपनी कोशिश पर घमंड करती हूं,
अकेली रह गई उसकी यादों के साथ,
पर आज भी इसी गलियारे में,
उस एक नज़र का इन्तजार करती हूं।
मेरा इन्तज़ार उसके लिए महज़ बहाना है,
मैं जानती हूं उसे चाहता पूरा ज़माना है,
मैं उसके लिए खुदगर्ज हूं,
वो मेरे लिए बेखबर ही सही,
अगर उसका नजरअंदाज करना एक फैसला,
तो मेरा इन्तज़ार एक ज़िद ही सही।
एक कुर्सी बैठी है गलियारे में,
ना जाने किसका इंतज़ार करती है,
निगाहें रखते आते जाते पर,
जाने किसको तकती है।
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Would my words reach to the reader the way i have interpreted them, would they be able to connect, am i writing something interactional, and biggest is
Will anyone would enjoy reading me?-
शुक्रिया,
तुम्हारा मेरी जिंदगी में आने के लिए,
इस बिन बुनियाद इमारत को
बेवक्त सहारे के लिए।
इन मुन्तजिर आंखों को,
एक शिद्दत देने के लिए,
ये बादसतूर इम्तेहान को,
एक असलूब देने के लिए
ये बेशूमार अश्कों को,
मुकद्दस का महफूम देने के लिए,
शुक्रिया,
तुम्हारा मेरी जिंदगी में आने के लिए।
तुमसे पहले मेरी जिंदगी में जो भी रहा,
उसे खूबसूरती से इकतितखाम देने के लिए,
वो ज़ख्म उस वक्त तक महज़ एक उज़्र था,
उस अफ़्सूर्दे के पिंजरे से रिहाई के लिए,
मेरे बीते हुए कल का इकरार सुन कर,
मेरे इमरोज़ की नये अज़ल के लिए,
शक्रीया,
तुम्हारा मेरी जिंदगी में आने के लिए।-