जो ना रुका कभी, जो ना झुका कभी
मन में प्रण लेकर देश बदलने चला था कभी।
खुद की ना कोई पहचान,
धूल में सना एक दलित इंसान।
महसूस कर देश की पीड़ा,
सर पर बांध जुनून का सेहरा।
चलता गया, बढ़ता गया, कर लक्ष्य संधान
छुआछूत जातिवाद से बदतर था जब समाज।
मुक्त कर सभी आडम्बर को
बनाया एक खुशहाल इंसान।
राजनेता, शिल्पकार, समाज-सुधारक बनकर
दिला गया देश को एक अलग पहचान।
संविधान निर्माता बनकर भारत रत्न सम्मान है पाया
गुलामी से जकडे़ लोगों को आजादी का जश्न दिलाया
नाम है जिनका बाबा साहब,
जिनका परचम राष्ट्र में लहराया।
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