पता है... जब दोनों साथ होते हैं तो ऊंचाइयां छूते ही है, डोर सोचता है पतंग की वजह से मैं ऊंचाइयां छू रहा हूं और पतंग सोचती है डोर की वजह से मैं ऊंचाइयां छू रही हूं और यही समर्पण दोनों को बांधे रखता है और दोनों अनंत आकाश में कहीं खो जाते हैं।
किसी प्रेम के बंधन में स्वतंत्र होकर जहां न डोर पतंग की दिशा तय करती है और न पतंग डोर की बस साथ होते हैं बिना इसकी फिक्र किए की दोनों एक दूसरे को कहां लेकर जा रहे हैं और मंजिल क्या होगी बस होते हैं तो एक अनंत सफर पर साथ... ❤️