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आप पढ़ना चाहें तो अवश्य पढ़ें
एक शिक्षक हूं और विद्यार्थी भी.... read more
चलो! कुछ वक्त के लिए रोक लूंगा मैं अपनी कलम
गर उठाओ हल मैं तोड़ दूं फांसी लिखने वाली कलम
आज न जाने क्यों रुपयों पर सेकी जा रहीं हैं बेटियां
तुम उठाओ हथियार या मैं लिखूं दास्तान -ए- कलम
मांओ को रोना पड़ा है अगर बच्चों के आगे तो सुनो
काट दो हाथ या जीभ कभी नहीं रुकने वाली कलम
अक्सर देखा सरकारियों को गैरसरकारी काम करते
मिले सज़ा तो ठीक नहीं तो कभी न रुकेगी ये कलम
इश्क़ की तालीम सिख रहे हैं आज के बच्चे रील्स से
दूर रहो बेगानी दुनिया से पढ़ लो ज़रा अल्हड़ कलम
आज़ादी की भूख देखी है मैंने भी सभी के आंखों में
तोड़ने की साहस नहीं ज़ंजीर -ए- जिंदगी की कलम
चांद की फ़िक्र है सूरज को इसलिए है देर से निकला
रखना भरोसा अच्छी लिखेगी ग़ज़ल राज़ की कलम-
बहुत गुमान है न! तुमसे अच्छा कोई नहीं
सच मानो ये तुम्हारा भ्रम है और कुछ नहीं
वक्त कभी एक - सा नहीं रहता किसी का
इसके आगे किसी का चलता है, एक नहीं
अर्जुन से लेकर कर्ण तक, सबको देख लो
दुश्मनी गैरों की ही ठीक है अपनों की नहीं
ज़माने से लड़ना सिखाया था जिस बाप ने
उससे ही बात - बात पर लड़ना, ठीक नहीं
कोई तुम्हारा है या नहीं, कभी जरूरी नहीं
जो किसी और का है तुम्हारा कभी है नहीं
ग़ज़ल पढ़कर समझते समझते थक गए हो
राज़ तब क्यों एक बार समझकर पढ़ा नहीं-
कभी तो मिले कुछ वक्त कि खुद को वक्त दे सकें
हम आज़ तुमसे जो न कह सके, न तब कह सकें
गुजरते हैं रोज हम अब भी तुम्हारी उन गलियों से
पहले भी न देखे थे घर तेरा, अब तक न देख सकें
अक्सर कशमकश रहती है तुम्हारी तस्वीर देखते
हम न तो तब रो सके थे और न ही अब रो सकें
यूं हमारे मोहब्बत के किस्से पूरे मुहल्ले मशहूर है
हम वो इकरार न तब कर सके, न अब कर सकें
अरसा लगेगा तुम्हें भूल कर तुमसे प्यार करने में
तुम्हारी नादानी न तब भूले थे, न अब भूला सकें
देखो ग़ज़ल की बात ग़ज़ल तक रहे तो अच्छा है
राज़ तुम हमें न तब समझे थे, न अब समझ सकें-
हमने अपने घर के सारे दरवाजे निकलवा कर रख दिए
खिड़कियों पर जो पर्दे थे, उन्हें भी उतरवा कर रख दिए
बचपन अक्सर बीत जाता है सभी का खेलने - कूदने में
वक्त को तेज चलता देखकर घड़ी खुलवा कर रख दिए
चार कदम ही सही चल तो रहे हैं सभी मां बाप के बगैर
यादें अक्सर दर्द देती हैं दीवारों में चुनवा कर रख दिए
गैरों की दुश्मनी अपनों की रिश्तेदारी से अच्छी होती है
'राज़' वक्त की आपा-धापी में गुलाम बना कर रख दिए-
कमरें की दीवार बड़ी मोटी है पर कोई सुराख तो होगी ही
माना सफ़र जरा मुश्किल है पर मंज़िल शानदार होगी ही
कल तक लोग जिसके जीत के कसीदे पढ़ रहे थे यहां
जाओ पता करो उनकी भी कोई मजबूरी जरूर होगी ही
जंगल में रहकर शेर और जल में मगर से बैर रखते नहीं
अराति बना है फिर भी कोई तो वजह बिल्कुल होगी ही
तारे रात में चमकते तो हैं पर गर्दिश में राह दिखाते हैं नहीं
चांद पर दाग भले कितना भी हो नीयत तो साफ होगी ही
कभी मौका मिले तो आ जाना टहलने हमारे छत पर भी
राज़ गैर जरूरी ही सही पर कुछ न कुछ बात तो होगी ही-
कुछ तो वजह रही होगी जो वो वापस लौट रहे हैं
दीए में तेल कम है बुझने से पहले लौ कांप रहे हैं
आओ बैठो इधर बताऊं एक राज़ की बात तुम्हें मैं
सुबह के भूले-भटके शाम को लौट, घर आ रहे हैं
कहा था सारे कुत्तों को न भौंको अपने मालिक पर
शेर है, बूढ़ा क्या हुआ उसे कुत्ते आंखें दिखा रहे हैं
शोर विरोधी थी किंतु अब हवाओं में गुनगुनाहट है
'राम' नाम से जलने वाले डीजे - धुन पर नाच रहे हैं
मुझे क्या मैं तो राज़ हूं जो देखूंगा वो सब लिखूंगा
चमचई नहीं करते आप, इसलिए ग़ज़ल पढ़ रहे हैं-
आओ बताऊं दो बात नए दौर के इम्तहानों की
जरा सी भी हौलसा नहीं बच्चों में इम्तहानों की
पढ़ता कौन है बना रहे चीट रात भर वो कमरे में
मां बाप सोचते हैं वक्त जल्द गुज़रे इम्तहानों की
कुछ मुदर्रिस लगे हैं मौके का फायदा उठाने में
बता रहे हैं बच्चों को उत्तर सभी वो इम्तहानों की
ऐसा नहीं कि ज़हीन बच्चे नहीं हैं इस गाढ़े दौर में
पस्त हैं हौसले उनके देख मंज़र-ए-इम्तहानों की
राज़ सच बोलने की हिम्मत है इस झूठे शहर में
बेइमानी हिला नहीं सकतीं दीवारें इम्तहानों की-
किस करवट बैठ रही है जिंदगी जानने की कोशिश है
मां बाप हमेशा करते रहें फक्र इस बेटे पर, कोशिश है
कितने ही आते जाते रहते हैं जिंदगी के इस डगर पर
किसी अपने का दिल न दुखे मुझसे कभी, कोशिश है
सड़कों के किनारे झुग्गियों में भी लोग पाल रहे हैं बच्चे
घर उन्हें दे न सका, न सही पर घर टूटे नहीं, कोशिश है
अक्सर किवाड़ के पीछे लोग अंजाम देते हैं गलत काम
बस सामने किसी के साथ कुछ गलत न हो, कोशिश है
राज़ पुरखों से ही सीखा है मिल-जुलकर रहना लोगों से
हाथों में तलवार की जगह मशाल हो सबके, कोशिश है-
वक्त गुजर रहा है, एक खास वक्त का इंतजार करते करते
अरसा बीत जाता है अक्सर, सपनों का पीछा करते करते
होठों पर हंसी, आंखों में चमक, सबकुछ बनावटी है लेकिन
देखा है बच्चों को पढ़ते, एक नौकरी का इंतजार करते करते
मां अपनी भूख भूल जाती है, बच्चों की जिद की खातिर
हड्डियां घिंसती है वो अपनी, उनकी जरुरतें पूरी करते करते
आजकल तो समय को बदलने की कोशिश सभी करते हैं
देखा है मैंने, मरते हुए बाप को, लड़ाई वक्त से करते करते
कभी और किसी दूसरे ग़ज़ल में लिखूंगा इन सबके बारे में
राज़ खामोश न रहो, वक्त है, कट जाएगा बात करते करते-