गोविन्द उपाध्याय   (गोविन्द गाजीपुरी)
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एक राष्ट्रवादी मा भारती का सपूत
Joined 6 February 2020


एक राष्ट्रवादी मा भारती का सपूत
Joined 6 February 2020

घर बदल देना समस्या का, समाधान नहीं होता
ईमान बदल देना इंसान का, परिधान नही होता
हक की लड़ाई लड़ेंगे जी जान लगाकर
क्योंकि गिरता वही है, जो सावधान नही होता— % &

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अभी तुझ में ही उलझा हुआ हु ऐ जिंदगी
फुर्सत मिलेगी तो जरूर हिसाब करेंगे तुझसे— % &

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बाय बाय योर कोट आज के बाद हम यह अपडेट नहीं रहेंगे— % &

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यूपी चुनाव में ब्राह्मण
मिल गई थी सीट तुम्हे, ब्राह्मण वोट के कोटा से
जीत के भागे पांच बरस, अपनो के ही बोटा से
विरोध तेरा ही होगा अब से जान ले ऐ ! खुदगर्ज
लिया नाम समाज का फिर से, होगी दवाई सोटा से— % &

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यूपी चुनाव में ब्राह्मण
मिल गई थी सीट तुम्हे, ब्राह्मण वोट के कोटा से
जीत के भागे पांच बरस, अपनो के ही बोटा से
विरोध तेरा ही होगा अब से जान ले ऐ ! खुदगर्ज
लिया नाम समाज का फिर से, होगी दवाई सोटा से— % &

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जख्मों पर मरहम लगाते लगाते दागदार बना दिया
अपनो का साथ निभाते निभाते,कर्जदार बना दिया
दौलत बेशुमार कहा से लाऊं खरीदने खातिर अपनो को
जिंदगी बोझिल बना खुद को, गमदार बना दिया— % &

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ऐ मेरी आंखो की निंदिया, कहां चली गई
तुमको ढूंढते ना जाने, कितने दिन बीत गए ।
हर रोज सोचता हु, आज मिल जाएगी तू मुझे
इसी ख्यालात में दिन रात कितने बीत गए ।
आ जाओ ना एक बार ही सही, सदा के लिए तुम
आलिंगित कर लू तुझे, सोच के वर्षो बीत गए ।
आऊंगा लौटकर फिर से, जहां में दोबारा
सब बदल जाएगा, रश्म ओ रिवाज रीत नए ।
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आंखो में आंसू लेकर, पैगाम क्या दिए
गंदगी का बोझ लिए, इल्जाम क्या दिए
खुद के अंदर झांको,आंसुओ को पी लिया मैने
इतने दिनो में शिवाय भगाने के, फरमान क्या दिए
आज अड़ सा गया हु कि ना जाऊंगा कही
दर्द ही दर्द का मर्ज रहा, इनाम क्या दिए— % &

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धमकियां देकर बताओ, आस क्या तुमको हुआ है
टिकट के परवाह का, विश्वास क्या तुमको हुआ है
राष्ट्रवाद, इंसानियत से परे नहीं हो सकते हम
आधुनिकता में न जाने अविश्वास क्यों तुमको हुआ है— % &

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हम करते रहे सजदा, कि अब भी होश में आओ
जगा लो खुद से खुद को तुम, ना जोश में आओ
इंसानियत सबको सिखाती एकता रखना
निज खिन्नता से तुम, ना आक्रोश में आओ
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