अपनेपन का दिखावा देखा है कभी-कभी
लोग मुकरते देखे हैं वादों से अभी-अभी
और तो और मगरपन वाले भी रहते है यहां
संख्या कम है नेकी वालों की
इसीलिए कहता हूं कि हां सभी-सभी-
सुर,जो निकले मधु कंठ से
अमर रहेंगे जिनके
स्वर कोकिला गाती रहे
गाएंगे तिनके - तिनके
गूंजेंगे,ए मेरे वतन के लोगों
तो कहीं , प्यारे नगमे
आवाज ही मेरी पहचान है
तो कहीं , भक्तिमय तराने
ये सुर सांत नहीं
अनंत में समाये हैं
मां भारती की इस बेटी ने
गीत सुरमयी गाए हैं-
बाबा
कि कोई दीवाना कहता है, तो कोई पागल समझता है
अपने इस देश के दलितों को, यह इक बाबा समझता है
हम'में और इन'में फर्क इतना है कि
इन'का हम पढ़ते हैं इन्होंने हमको पढ़ लिया था
कि कोई दीवाना कहता है, तो कोई पागल समझता है
कि इस देश के दलितों को, यह इक बाबा समझता है
बाबा की उन... बातों को, बस मान लो तोहफ़ा
मिला है दिवस, आज का ये, चलो गुण गान करते हैं
कि कोई दीवाना कहता है, तो कोई पागल समझता है
कि इस देश के दलितों को, यह इक बाबा समझता है-
शीशा वह पुराना ही था
चटक गया है एक किनारे से...
कह कर निकल गया कि,
पिघला कर फिर से जोड़ दे...-
फिर से वही बात.....
नई दुनिया,नए दोस्त
नई जगह,नए बोल
पर अंदाज वही है मेरा ...
दिल न टूट जाए कभी किसी का
यही ख्वाहिश,
पाल रखी है बचपन से,
कह देता हूं खुद से ही कभी - कभी
कि संभल कर रहना तू
अपने ही भोलेपन से...-
किसी काम को करते समय तीन तरह के लोग मिल जाते हैं-
प्रथम आलोचक,
द्वितीय प्रशंसक(प्रेरक) एवं
तृतीय आलोचक सह-प्रशंसक(गुरु)..-
सुन रश्मि , इंतजार तो तेरा है ही,
बस स्वागत में चंद पुष्प तो बिन लूं।
इंतजार महकने का अब किसे नहीं है,
भिगोने को तुझे क्यों मैं सुराही'न लूं?
चपल चकोर भी खैर मना रहा होगा,
क्योंकि,प्रेमी अंधेरा कर नहीं पाएगा।
खुदा कसम , बाग हरियल ही होगा,
तिमिर को छुपाने पुष्प जो छाएगा।।-
रुको! एक उम्मीद है अभी भी,
तेरा मुकंदर
दर्द किसको पता
हमदर्द कौन यहां
राही तेरा साथी कहां
जाने क्यों भटका रहे हैं
कब से अटका रहे हैं
-
अपेक्षाएं कम कहां है?
उपेक्षा कैसे कर डालूं...
खिला है बाग गुलशन - २
मनोवेदना क्यों अब मैं पालूं?
मंगल की डोर रहे सदा कर में,
शांति पथ का रथ ले चालूं।
पल न सके कोई द्वंद्व मन में,
प्रसाद सदा दिल की मैं पालूं ...-