जिंदिगी की सरगम का कुछ ऐसा फ़साना मिला
जिसे चाहा वो ही बेगाना बना
समझा जिसे अपना, वो किसी और का दीवाना बना
जिन से चाही थी थोड़ी सी खुशिया उन से ही दुःखो का खज़ाना मिला-
जिंदिगी की सरगम का कुछ ऐसा फ़साना मिला
जिसे चाहा वो ही बेगाना बना
समझा जिसे अपना, वो किसी और का दीवाना बना
जिन से चाही थी थोड़ी सी खुशिया उन से ही दुःखो का खज़ाना मिला-
अब उन्हें एहसास है मेरा, मेरे दूर होने से,
करते ना थे चैन जो दो पल भी बातें,
आज वो बातों को ही याद कर के रो रहे हैं,
अब तो मेरे पास आने की दुआं भी ख़ुदा से कर
रहे हैं,
मेरे दूर जाने से अब वो उदास हो रहे है,
मेरे मौन होने से अब वो बड़ा शोर कर रहे हैं,
मेरे मौन होने से अब वो बड़ा शोर कर रहे हैं,
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राम,श्याम आज सबके नाम है,
रखता ना कोई आज बच्चो के रावण नाम है,
पर करते ना कोई उनके जैसा काम है,
बस किया आज उनके नाम को बदनाम है,
बस कहनी मुझे एक बात है,
जितना बुरा मेरा नाम है,उससे बुरे तो आज के लोगो के काम है,
बहन के अपमान पर लुटा दिये मैंने अपने प्राण है,
पर आज तो भाइयों ने ही लुटा अपनी बहनों का मान है,
हां किया मैंने पराई स्त्री का हरण है,
पर दिया उसको भी मैने सम्मान है,
पर देख आज इस दुनिया को लगता है,
रावण से कही बुरा तो अब राम का नाम है,
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चार भुजाओं वाली तू माँ,
सबको सिद्धिया देने वाली माँ,
चक्र,गदा,शंक और कमल सब तूने साजे,
कमल पुष्प पर रहे तू आसीन,
नोदेवी में तू अंतिम देवी,
जो करता है तेरी पूजा,
अणिमा, महिमा, गरिमा, लघिमा,
प्राप्ति, प्राकाम्य, ईशित्व और वशित्व,
ये आठों सिद्धियां उसको मिल जाती,
शिव जी ने भी तुमको पूजा,
तब जाकर अर्द्धनारीश्वर रुप हुआ है उनका,
ऐसा है माँ "सिद्धिदात्री" तेरा रूप
सबसे अनोखा तेरा स्वरुप…
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उपमा तेरी शंख, चंद्र और कुंद के फूल से,
आठ साल का है माना तुझे,
अष्टवर्षा भवेद "महागौरी" कहा तुझे,
वस्त्र,आभूषण तेरे है सफेद,
इसीलिए श्वेताम्बरधरा भी ये दुनियां कहे तुझे,
त्रिशूल और डमरू भी तूने साजा,
कठोर तपस्या की है तूने,
रंग तेरा काला पड़ने को आया के,
शिव को तूने खूब मनाया,
फिर उनको पति रूप में पाया,
प्रसन्न होकर शिव जी ने तुमको,
गंगा के पवित्र जल से नहलाया,
गौर वर्ण जैसा रंग फिर हुआ तुम्हारा,
इसी लिए माँ"महागौरी" नाम कहलाया,
नवदुर्गा "आठवा" है तेरा रूप,
ऐसा है "महागौरी" तेरा स्वरुप,-
एकवेणी जपाकर्णपूरा नग्ना खरास्थिता। लम्बोष्ठी कर्णिकाकर्णी तैलाभ्यक्तशरीरिणी॥ वामपादोल्लसल्लोहलताकण्टकभूषणा। वर्धनमूर्धध्वजा कृष्णा कालरात्रिर्भयंकरी॥
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महर्षि कात्यायन की तुम पुत्री,
इसीलिए कात्यानीतेरा नाम,
वैद्यनाथ स्थान पर हुई प्रकट,
ब्रज गोपियों ने तुम को पूजा,
ब्रजमंडल की अधिष्ठात्री तुम,
अत्यंत भव्य और दिव्य तुम्हारा स्वरूप,
चार भुजाओं का तेरा रूप,
अभयमुद्रा और वर में देती वरदान,
तलवार से तुम करती वार,
कमल पुष्प से तुम करती प्यार,
सिंह पर रहती तुम सवार,
जो भी करता तुम को याद,
उसका होता पापो का नाश,
नवदेवी में "छठा"रूप
ऐसा है माँ "कात्यानी" तेरा स्वरूप-
पूजा जो तेरी है करता,
मोक्ष का द्वार उसके लिए खुल जाता,
पहाड़ो में है तेरी माया,
नवचेतना का निर्माण वहाँ से ही संभव हो पाया,
तेरी कृपा से मूढ़ को भी ज्ञानी हो जाता,
चार भुजाओं वाली तू,
स्कंद कुमार कार्तिकेय की हो माता,
बायीं दो भुजाओं में स्कंद कुमार और कमल पुष्प पकड़े हुए,
दायीं एक भुजा से वर देते हुए और एक भुजा में तेरे कुछ कमल रखे हुए,
कमल पुष्प पर हो विराजती,
इसी लिए पद्मासना के नाम से भी तुम्हे ये दुनिया जाने माता,
कालिदास ने भी तुम से वर पाया,
इसीलिए वो "रघुवंशम महाकाव्य और मेघदूत" इनको लिख पाया,
ऐसी है "स्कंद" माँ तेरी अराधना
नोदेवी में "पांचवा" नाम माँ तेरा आता,
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अपनी मंद और हल्की हँसी से,
"ब्रह्मांड" को उत्पन्न किया तुम ने,
अपने "ईषत् हास्य" से ब्रह्मांड की फिर रचना की तुम ने,
इस सृष्टि की आदिस्वरूपा भी तू,
कमण्डल, धनुष, बाण, कमल-पुष्प, अमृतपूर्ण कलश, चक्र,गदा और सिद्धियों और निधियों की जप माला,
तुम हो आठ भुजाओं वाली माता,
कुम्हड़े की बलि भी तुम्हें प्रिय,
सूर्यमण्डल में है तेरा वास,
सूर्य के भांति तेरे शरीर की तेज प्रभाव,
और दसों दिशाओं में तेरा ही कीर्ति मान,
विधि-विधान से जिसने पूजा,
उसको तेरा एहसास हो जाता,
आयु,यश,बल तुझ से मिल पाता,
नवदुर्गा में "चौथा" तेरा रूप
ये कुष्मांडा माँ तेरा स्वरूप
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