गहराई हो पीड़ा तो, उल्लास कहाँ से आए
सौ सौ दीप जले किंतु उजास कहाँ से आए
देहरी देहरी सजी रंगोली दमके आंगन द्वार
बुझे बुझे सूखे मुखड़े, उद्भास कहाँ से आए
नियति के संरक्षण में जीवित रहते वनफूल
अब ये मत पूछा जाए सुवास कहाँ से आए
युद्ध है घोषित डगर डगर पे है मारक प्रहार
चाँद तारों वाला अब आकास कहाँ से आए
मज़हब मसला,सरहद मसला लापता रिश्ते
एक दूजे पर आए तो विश्वास कहाँ से आए
जेठ की दोपहरी सा जीवन सांसे है झुलसी
ऐसे में, त्योहारों का मधुमास कहाँ से आए
–विनोद प्रसाद-
#govind #alig
'मस्ताना फ़ि... read more
एक नजराना पेश शायरी का,
तुझे अल्फाजों में अपनी गढ दूं...
बेहतरीन ताबीज की गुत्थी में,
तेरे इस सुन्दर तस्वीर को मढ दूं...
बेमौसम बारिश की आंसू को,
अपनी सूखी रूमाल में भर दूं...
बूझा-बूझा सा मासुम चेहरे पर,
तनिक खुशियों की बारिश कर दूं...
तनहा-तनहा सा ये जीवन,
जरा खुशियों का रंंग भर दूं,
बेपनाह मुहब्बत की सिंदूर,
तेरी ये सूनी माथे पर धर दू...
कोरा कागज़ सा हसीन चेहरा में,
तेरे दिल के अरमानों को पढ़ दूं,
तुम्हारी अधरों में लाली लगाकर,
सुन्दर पलकों पर काजल जड दू...♥️
🖊️☕-
कृष्ण चले आते हैं मेरे तन मन में
अनंत सुर सुंदर कलाओं के साथ,
अपना-पराया, छोटा-बड़ा, मेरा-तेरा
सब भेद मिटाते उनके मंद मुस्कान।
आप सभी को
कृष्ण जन्माष्टमी की
हार्दिक शुभकामनाएं-
उम्मीद की एक झलक अपने में देखा है।
दिलकश नज़ारा संग तुम्हें सपने में देखा है।-
जग में ऊंचा नाम करो।।
कुछ काम करो, कुछ काम करो
बड़े भाग से मानव तन पाया,
तो बस ना यूं आराम करो ।
अपनों की खातिर सब करते,
तुम लोगों का कल्याण करो।।
एक बचपन का जमाना था
होता जब खुशियों का खजाना था,
चाहत होती चाँद को पाने की थी,
पर दिल तो तितली का दीवाना था,
बचपन में सबसे अधिक पूछा गया
एक सवाल…
बड़े होकर क्या बनना है?
अब जाकर जवाब मिला कि
फिर से बच्चा बनना है।
सभी को बाल दिवस की ढेर सारी बधाई 😍😍-
इत्तेफ़ाक से मिल जाना कमाल है,
यूँ मेरी ज़िंदगी में आना कमाल है।
दीदार की बड़ी हसरत है लेकिन,
बातों से दिल चुरा लेना कमाल है।
हज़ारों ख़्वाहिशों के साथ दिल का,
तेरी आँखों में उतर जाना कमाल है।
चंद लम्हों में न जाने कितने चराग,
यूँ मुहब्बत के जला देना कमाल है।-
अच्छी बातें कर रहे हैं लोग
फिर भी खुद से डर रहे हैं लोग।
बड़ी बातें हैं बड़़े सिद्धान्त
देखिये क्या कर रहे हैं लोग।
नहीं जारी है यहाँ कोई जंग
हादसों में मर रहे हैं लोग।
गली में आग फैली है मगर
अपने अपने घर रहे हैं लोग।
पुलिस अपनी और अपनी फ़ौज
फिर भी क्यों थरथर रहे हैं लोग।
वजह बेहतर नहीं पाए ढ़ूंढ
लड़ते लड़ते मर रहे हैं लोग।-
दास्तां सुनाऊं और मजाक बन
जाऊं...
इससे अच्छा मुस्कुरा कर खामोश
हो जाऊं।-
जिंदगी की उलझने अब तमाम होती है,
सुलझनो की तलाश में सुबह शाम होती है,
एक परिंदा उड़ता है पूरी कायनात में,
एक अच्छे दिन की उम्मीद जीस्त हमाम होती है।-
स्याह अंधेरों में जलते रहे है,
कांटा था हर गुलाब संग
मगर यादों के इत्र से महकते रहे है।-