हालात काबू में नहीं ह मेरे और ही भी कैसे हर इंसान हाथ छुड़ा कर जा रहा ह मजबूर भी बहुत हु पर किस्मत इसी के कुछ कार नही सकते थक चूका हूं खुद को संभालते हुए पर अब सोचता हु की कोई संभाल ले अब नही लड़ पा रहा हु अपने बुरे हालत से
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पता नही क्यों शाम ढलते ढलते हर
अपना कहने वाला इन्सान साथ छोड़ने लगता है..।
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मुझे कोई शिकायत नही है ज़िंदगी से बस इतना चाहता हू
की अगर ज़िन्दगी में कुछ अच्छा ना हो तो
कुछ बुरा भी न हो.।।-
हर दिन सुलझा रहा हूं सबकी उलझने
में कभी अगर उलझ जाऊ मैं तो सुलझा
देना कोई.।।-
पता नहीं क्यों हर रात मेरे जेहन में एक खयाल आता ह
की जैसे में उसे नही भूल पा रहा हूं वैसे ही काश वो भी
मुझे ना भूले .।।-
जिन्दगी में बुरे से बुरे हालात से लड़ने के बाद एक
चीज तो समझ आई ह की अगर अप
सही ही तो लोग आपको गलत ही मिलेंगे..।।
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अब वो शख्स दुर हो गया मुझ से
जिसे कभी में अपनी दुनिया
माना करता था..।।
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हर शाम अकेला बैठ जाता हूं नदी
किनारे और फिर वही फेर सामने
आता है क्या खोया क्या
पाया बस इसी का
हिसाब लगाकर देखता हू की पाया तो कभी
कुछ नही पर खोया बहुत कुछ ह मेने..।।-
वैसे एक बात तो ह मुझ में आज तक
सही रास्ता नही डूंढ पाया.।।-