साक्षात प्रेम का दर्शन राधा है
राधा बिन कृष्ण जी आधा है
सांस है कृष्ण,धड़कन राधा है
दूर है कृष्ण पर पास राधा है
कृष्ण शरीर है हृदय राधा है।
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दर्द तुझसे मोहब्बत हो गई है
सांसें भी कुछ धीमी हो गई है
आंखें भी कुछ नम हो गई है
यादें बहुत ही चंचल हो गई है
वो जां न जाने कहां खो गई।-
क्या से क्या हो गया
दुनिया अपनी होकर आज पराया सा हो गया
अपने ही अपनो से पराया सा हो गया
माता पिता की आश आंखों का तारा न जाने कहां खो गया
तकती आंखें आज आश इंतजार में दर्द ही बेसहारा हो गया।
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तू दूर सही मुझसे पर तेरी यादें मेरे पास है
धड़कता है तेरा दिल चलती मेरी सांस है
तू सागर है प्रेम की मुझे एक बूंद की आस है
तू दूर सही मुझसे एहसास में सदा मेरे पास है
तू ही हमसाया मेरी तू ही मेरा हमराज़ है
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मै कैसे कहूं जाना कि तुझसे प्रेम करता हूं
मुझे पता नहीं कि तुझसे ही प्रेम करता हूं
हां मुझे इतना तो मालूम है तुझपे मरता हूं
तेरा साथ न छुटे कभी प्रभू से वंदन करता हूं
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तेरी कमी जो मुझे मिल न सकी तभी मेरा प्रेम जिंदा है
अमर प्रेम की इस अमर कहानी में हम दोनों ही जिंदा है।-
प्रेम रूपी दरिया में तैरना प्रेम नहीं है
उस दरिया में डूब जाना ही प्रेम है।-
गुजरता नहीं बिना तेरे मेरा वक्त,बस तेरी याद बेहद शताती है
जब तेरी याद में डूब जाता हूं,वक्त न जाने कहां चला जाता है
तेरी दीदार की तम्मन्ना लिए मैं शाम और सुबह भूल जाता हूं
जब आंखे नींद को तरसती है सारी रात दिल को समझाता हूं
तड़प अपनी मैं कितनी बयां करु, मैं तो सच में हार जाता हूं
फिर लगता है मुझे कि अपने प्यार को शायद जीता पाता हूं।-