Gnsq Hussaini  
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Joined 15 April 2018


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Joined 15 April 2018
4 FEB AT 20:41

ये बूत - ए - शहर- ए - आम है
यहाँ तो बेवफाओ का ही नाम है
इश्क़ महज़ अब किस्सा है
किताबो का

जिस्मानी भूक ही इश्क़ का नाम है
यहाँ तो सजाए दी जाती है इश्क़ के
राहगिरो को, बदचलनी जो आम है
मुखोटा इश्क़ का लगाए जिन्ना करते
आम है,इश्क़ का तो सिर्फ अब नाम है

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2 FEB AT 22:08

अब तो दिल मे
लोगो का आना जाना आम बात है
जाने क्यों
एक तेरा ही अहसास बहुत खास है
दिल को जैसे वश मे कर रखा है
इस दिल ने तो
तुझे ही हाकीम मुकरर् कर रखा है

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2 FEB AT 0:01

दुनिया से दिल लगाओगे तो
तन्हा ही रह जाओगे बेहतर तो है
की अपने हक में फैसला करो,

मौला से मोहब्बत
और इबादत-ए-खुदा करो

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27 DEC 2022 AT 23:37

भटक जाता हूँ मैं अक्सर उस गली में
जिस गली में अक्स तेरा नज़र आता है

निगाहे अक्सर ठहर जाती है उस खिड़की पर
जिस पर चेहरा कोई तुझ-सा नज़र आता है
बड़ा सुकून मिल ता है दिल को उस चौकट पर
जिस चौकट पर नाम तेरा पुकारा जाता है

बद-किस्मती तो ये है हमारी जब उठू नज़र आए
चेहरा तेरा ऐसा आशियाना कहा मिल पाता है

एक मैं ही आशिक़ नही तेरा
सारा जमाना नज़र आता है
अगर तू चाहे तो दे मुकाम दिल मे
बस एक यही रास्ता नज़र आता है
इसी उम्मीद में ये तन्हा दिल
तेरे शहर में भटकता जाता है

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18 DEC 2022 AT 20:52

ये राहे सफर दिल्ली गुलजार पाया
एक हम ही नहीं यहां बस में तो
सभी को परेशान पाया
सफर आसान नहीं बसो का यहां
बस किराया थोड़ा सस्ता पाया
अंजान हो अगर राहो से तो
कोई गुरुर न करना पास बैठे
कंड़कटर से रास्ता पुछ लेना
रखना ध्यान थोड़ा अपनी जेबो का भी
हाथ साफ कर गया कोई तो फिर न कहना
दिल्ली दिल वालों की है बेशक
मगर ना लिया टिकट तो फिर न कहना
दिल्ली की रफतार को थोड़ा ब्रेक जरूर है
होता है जहां शहद वहां
मक्खी भी होती जरूरी है

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2 DEC 2022 AT 0:29

सुहाना एक लडकपन
कुछ ऐसा था मेरा बचपन

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27 JUN 2022 AT 21:56

तकदीर पर अपनी,
मैं खुदा से शिकायत कर बैठा
तुझसे मिलाकर खुदा
मुझे कैसे जुदा कर बैठा
ख़ुदा होकर देखो खुद खुदा
कबीरा गुनाह कर बैठा

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2 APR 2022 AT 15:30

तलाश में था मैं जिसकी वो लम्हा आया
अपने साथ कितनी रहमते साथ लाया
वक़्त देखो कितना अफज़ल आया
दुआए अब होगी सबकी लाजमी कबूल
बरकतों का महीना "रमज़ान" आया

एक प्यारी सी खुशबू हबा में बहती जाती है
ओर हर सजदे में मदीने की खुशबू आती है
दिल ए बेचैन को भी चैन आए जो,एक हसरत
मेरी इस महीने के सदके में मुकम्मल हो जाए

नमाज़ ए इश्क़ अदा करु मैं मदीने में
वही के वही मेरा दम निकल जाए
शहादत ए जाम नोश पाएगे और जन्नत से
भी प्यारी जन्नतुल-बकी में आराम फरमाएंगे

रूह मेरी एक बार जो आका से मिली तो फिर
जुदा न हो पाएगी यही वजह है मुख्तसर
मेरी पहली नमाज़ ही मेरी आखरी कहलाएगी

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28 MAR 2022 AT 11:38

एक अंजान को अपनी जान समझ बैठे
जिसके ख्यालो में भी कभी न थे हम,

ऐसी हसीना को दिल का रहनुमा समझ बैठे

ओर वो पूछ लेता कभी हाल ए दिल हमारा
ये बचकाना सा सवाल कर बैठे

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26 MAR 2022 AT 0:44

दुनिया मे सुकून
न किसी मएखाने
में पाया

और
न किसी दौलत के
खजाने में आया

जो सुकून

"या वारिस"

तेरे आस्ताने पे पाया

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