गज़लकार आलम आजाद   (Er. Azad Alam)
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Joined 28 May 2020


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Joined 28 May 2020

यकीन माने मेरी ज़िंदगी में अदना सा भी ग़म न होता
काश दुआ देने वाला मेरी मां का हाथ मेरे सर पे होता

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सर सज़दे में हर वक्त न रहे तो भी हर वक्त
दिल सज़दे में रखता हूं।

मैं मोमिन हूं, ख़ौफ़ ए खुदा भी रखता हूं
दिल में इश्क़ ए खुदा भी रखता हूं ।

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Being honest in your profession
is the key for your true destination

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I believe in doing work
rather than showing work

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ठुकरा दो वो ताज़ जो जिल्लत से कोई बादशाह भी अपने कदमों से उठा कर पहनने के लिए पेश करे

अपना लो उस ग़ुरबत को जिस से कोई फ़कीर भी इज़्ज़त से नवाजें

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जिंदगी में एक मुक़ाम ऐसा भी आया आलम
जब मुझे मोहब्बत से ज्यादा
घर की जिम्मेदारियां जरूरी लगने लगी

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खुदा की कसम मुझमें किसी भी बात का घमंड नहीं है

लेकिन जब बात " आबरू " की आ जाए
तो हम अपनी हर " आरज़ू " को ठुकरा देते है

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मैं गुनाह की उस दहलीज़ पर पहुंचने ही वाला था आलम

फिर मुझे उसकी मोहब्बत याद आ गई

जो हमसे बेइंतहा मोहब्बत करता है

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बस इतना कहा और आलम ने अपने ख्वाहिशों की खुदकुशी कर ली .......
भला तेरे बगैर गुजरे हर वो लम्हा
कभी खुशनुमा तो नहीं हो सकता

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