Gita Sharma (अग्निशिखा)   (Gita Sharma (अग्निशिखा))
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Joined 23 August 2019


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Joined 23 August 2019

आहट सुनाई देती थी कल तक जाने कितनों की
आज अपनी पदचाप सुनाई देती है
परछाइयों में घिरी रहती थी कल तक जाने कितनों की
आज अपनी छवि दिखाई देती है
एकान्त नहीं है ये; अपने अस्तित्व की यात्रा का आरम्भ है
अवलम्ब नहीं कोई दूजा अब मेरा; मुझे मेरा ही संग है
बस एक उड़ान है बाक़ी ….!!
मुझसे मेरी पहचान है बाक़ी …!!

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चटकीला लाल, हरा, और रंग गुलाबी जब,
आकाश को रंग जाये
तब समझना होली है..।
प्रियतमा के गालों पर लज्जा और गुलाल मिलकर जब,
नवीन रंग बनाये
तब समझना होली है..॥
बिन डमरू बिन बाँसुरी जब,
कर्णों में मधुर संगीत बह जाये
तब समझना होली है..।
बिन शब्द, बिन भाषा चहूँ जब ,
मधुर गायन ठुमकता जाये
तब समझना होली है..॥
आज जिस ओर मैं नज़र घुमाऊँ, मस्तानों की टोली है..।
आज कोई द्वेष नहीं; कोई बैर नहीं; बस “होली” है..॥

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नज़दीक हैं हम दूर नहीं
आवाज़ देकर देख ले
खड़े हैं हमेशा तेरे सामने
पलकें उठाकर देख ले
अभी तो सफ़र शुरू ही हुआ है जीने का
तू यूँ चुपचाप चले जाने की बात न कर….
देर-सवेर हो जाती है कभी-कभी
तू यूँ जुदा हो जाने की बात न कर……
नज़दीक हैं हम दूर नहीं…..

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जीवन हर पल का खेला है
न उसे यूँ जाने दो
इस पल को जी लो शान से
अगला पल जाने हो या न हो …

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झूठे लोग, झूठी बातें……..झूठे दस्तूर यहाँ सारे
हर एक यहाँ जो पास खड़ा,
है सोच में डूबा कि;
कैसे रख कर पैर सर पर तुम्हारे,
खुद की नैया वो पार उतारे……

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नैनों में माँ की ममता जब;
‘स्नेह वर्षा’ बन बरसती है….
पिता के स्पर्श से जब; ‘
सुरक्षा-भावना’ पनपती है…..
भाई के रक्षा-भाव से जब; ‘
आत्मविश्वास-लड़ी’ फूटती है…..
बहिनों के ‘अपनत्व से जब;
बलाएँ घुटनों पर जा सर पटकती हैं…
पिया के ‘प्रेम-भाव’ से जब;
आँखें हया से झुकती हैं……
स्वाभिमान हो चट्टान-सा, पर जब;
त्याग भावना जाग उठती है …..
तब;
प्रतीति स्वयं में भाषा हो जाती है
ध्वनि की भाषाएँ गुम हो जाती हैं ...😇

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बात उन दिनों की है जब;
हर दिन नया सवेरा होता था..।
चित्त उल्लास भरा हुआ
उत्साह ऊर्जा भरा हुआ करता था ...॥
आँसू टपकते थे, मगर ;
अपनत्व भाव से भरे हुए…।
मुश्किलें आती थीं, मगर ;
अपने होते थे दीवार बन खड़े हुए...॥

इन दिनों सुबह तो रोज़ होती है
पर सवेरा नया नहीं होता…।
चित्त उल्लास भरा
उत्साह ऊर्जा भरा नहीं होता...॥
आँसू हृदय को चीर
भेदन करते रहते हैं…।
और अपने अलगाव का भाव लिए
मुँह मोड़े खड़े रहते हैं…॥

बात उन दिनों की है जब…..

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मौत तो बेवफ़ा है एक ही रोज़ आएगी
ये तो ज़िन्दगी है;
जो भले ही तड़पाए पल-पल हर पल,
पर वफ़ा ही वफ़ा निभाएगी
तो; आओ खुद को एक उम्मीद दीजिए
भले मिले हों ज़ख़्म पर ज़ख़्म,
फिर भी ज़िन्दगी से दोस्ती कर लीजिए .....😇

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🙏🏻🙏🏻😇😇

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तू नारी है अबला नहीं
चाहे तो तूफ़ानों के तू मुख मोड़ दे
प्रचण्ड वेग से बहती नदियों को तू पूरी होड़ दे…..
तू तो स्वयं ही लेखनी है कवि तो बिन कारण गौरव पाता है
तू धार है उमड़ते भावों की,
तेरे आगे तो ईश भी; पृथ्वी पर आने को,
नतमस्तक हो जाता है…..
तू नारी है अबला नहीं
उठ! उचित समय अब; चूड़ी खनका,
शक्ति भर भीतर अपने, अपना प्रचण्ड रूप दिखा……
कलयुग की है संध्या ये
सतयुग का प्रताप नहीं
कुकर्म करने वालों को होता अब संताप नहीं….
कोई कर्म, कोई धर्म, कोई मानवता का पाठ नहीं
कोई लज्जा, कोई संकोच. कोई पश्चाताप नहीं……
उठ! उचित समय अब, चूड़ी खनका,
शक्ति भर भीतर अपने, अपना प्रचण्ड रूप दिखा……
तू नारी है अबला नहीं…..

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