तू नारी है अबला नहीं
चाहे तो तूफ़ानों के तू मुख मोड़ दे
प्रचण्ड वेग से बहती नदियों को तू पूरी होड़ दे…..
तू तो स्वयं ही लेखनी है कवि तो बिन कारण गौरव पाता है
तू धार है उमड़ते भावों की,
तेरे आगे तो ईश भी; पृथ्वी पर आने को,
नतमस्तक हो जाता है…..
तू नारी है अबला नहीं
उठ! उचित समय अब; चूड़ी खनका,
शक्ति भर भीतर अपने, अपना प्रचण्ड रूप दिखा……
कलयुग की है संध्या ये
सतयुग का प्रताप नहीं
कुकर्म करने वालों को होता अब संताप नहीं….
कोई कर्म, कोई धर्म, कोई मानवता का पाठ नहीं
कोई लज्जा, कोई संकोच. कोई पश्चाताप नहीं……
उठ! उचित समय अब, चूड़ी खनका,
शक्ति भर भीतर अपने, अपना प्रचण्ड रूप दिखा……
तू नारी है अबला नहीं…..
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