कभी उस दिन को याद किया है मैने,जब मां पास हुवा करती थी।उसके पहलू में हर दिन हर शाम huva करती थी।आज भी उसकी रशोई का ज़ायका मायने रखता है।मां,आज भी तेरा वो नादान सा बच्चा कोने में छुपके रोया करता है।कई हादसे हूवा करते है आज भी जिंदगी मैं।पर पहले सा माथे पर कॉन हाथ रखा करता है?
ज़माने चले गए है जैसे .....तेरे जाने के बाद ओ मां तेरे आंचल सा कोई साया कहा मिलता है। बहोत याद आती है तेरी,खुशी मैं भी...... गम मैं भी....आज भी वो बच्चा.....कभी कभी बच्चा बन जाता है।
©गीता एम खूंटी-
यूं चलते गए है हम अंजान राहों पर,
शायद ये राह तुझ तक ले जाए मुझे।
©गीता एम खूंटी-
कहा थे रास्ते मंजिलो के,वो भूल गए
रूहानियत सी लगी ये चाहत तेरी मुझे
ख्वाबों को संजोया आंखो में,पर ख़्वाब
देखना ही भूल गए,तुमसे जो मुहोबत हुवी।
©गीता एम खूंटी-
मुसाफिर तुम्हारी मंजिल का,यू बदनाम हो जाए,
सफरनामे के नाम पर,चलो एक चाय हो जाए।
©गीता एम खूंटी-
मिल जाए शायद कभी कोई रूहानी सी मुहोबत,
सांस आती जाती रहे मेरी तेरे साथ इतनी है चाहत।
©गीता एम खूंटी-
हा,करनी है मुझे तुमसे रूहानी सी मुहोबत।
दो बदन एक जान जैसे,ऐसी होगी अपनी चाहत।
हा••• एकबार मुझे करनी है तुमसे.......
बस रूहानी सी मुहोबत.....।
©गीता एम खूंटी-
यू दामन में अपनी लज्जा से शर्माए से रहते हो ,
हसीन लम्हों को और भी हसीन बनाए बैठे हो।
©गीता एम खूंटी-
कभी कोई किनारा भी,मुजमे पूरा समंदर भर गया,
हर लम्हा जिंदगी का ,मुज्मे कुछ ना कुछ दे गया।
यू तो काफी लंबा सफर ना था हमारा,
जहां भी गए मुज में कोई कारवां बस गया।
©गीता एम खूंटी-
चंद अल्फाजों में अपनी पूरी कहानी बयां कर जाए,
मशहूर हो इतने के,ज़माने को याद रह जाए।
©गीता एम खूंटी-