Girraj Maheshwari   (Meggi)
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खामोशी भरे लम्हे मेरे ही होने चाहिये तुम खामोश रहोगी तो में जीना ही भूल जाऊँगा।
Joined 1 July 2018


खामोशी भरे लम्हे मेरे ही होने चाहिये तुम खामोश रहोगी तो में जीना ही भूल जाऊँगा।
Joined 1 July 2018
6 MAR 2022 AT 23:11

हर वो साथी पैसे का
ना मोल माया का
राम ने अयोध्या छोर
जंगल अपनाया था।


गिर्राज माहेश्वरी

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7 JAN 2022 AT 23:52

जमीन की आग में फंसा
मौत से न डरा
शिखरों की ऊँचाई पर चढ़ा
पर वो लौटा नही
पीछे मुडा नही
छोड सबको
वो आगे बढ़ा
शिखर पर डटा रहा
जीत गया आसमान की जमीन को भी
पर वो अकेला खड़ा रहा ।

गिर्राज माहेश्वरी

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10 NOV 2021 AT 20:25

वो एक हफ्ते के लिए घर आते है
आते ही हमे कुछ परिवर्तन की सलाह दे जाते है
आते है पर घर पे नही रुकते पाँव उनके
पर घर की ज़िमेदारियो का ऐहसास है ऐसा बतियाते है
चन्द फुर्सत मोबाइल से निकाल कर
हम पर कुछ ऐहसान जताते है
वो इस तरह एक हफ्ते के लिए घर आते है
बातें तो हज़ार करते है मोबाइल पर
घर आते ही मोबाइल में रह जाते है
दिन भर दोस्तों में मग्न होकर रात में थोड़ा बतियाते है
रात में जल्दी सोना है बोलकर
कमरे का दरवाजा बंद करके
टिक टिक मोबाइल में लग जाते है
वो इस तरह एक हफ्ते के लिए घर आते है।
कई ख़ामियों है बता कर
अपने मन की कर जाते है
वो एक हफ्ते के लिए घर आते है।

गिर्राज माहेश्वरी


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15 OCT 2021 AT 11:54

जीत तो वो भी सकता है जो हमेशा हार रहा हो
जीवन तो उसका भी स्वर्ग हो सकता है
पर हार मिलना सबकी नजर में नरक सा ही है।

गिर्राज माहेश्वरी

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28 SEP 2021 AT 6:49

काश
में सारी
मुश्किलों
को रफू
कर देता
अगर
धागे टूटे
ना होते ।

गिर्राज माहेश्वरी

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4 APR 2021 AT 0:08

नैनों की ख्वाइशें
भी कितनी मतलबी है
मन की ख्वाइशों को
पीछे छोड़ देती है

गिर्राज माहेश्वरी

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31 MAR 2021 AT 11:07

क्यों छुपा ली आँखे
तुमने ये पता नही
अब मेरे आने का इंतज़ार भी नही
बता देती की आज मुलाकात नज़रों के बगैर है
तो यू खामोशी नही होती मुलाकात में
खैर अब क्या बातें होगी
नज़रों से कब मुलाकात होगी
फिर जब पलक उठाओ अपनी
तो बस समझ लेना बंद आँखों
का नतीजा खामोशी देता है

गिर्राज माहेश्वरी

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21 MAR 2021 AT 21:37

इन चार दीवारों के अन्दर
की दुनिया को
वो क्या पहचाने
जिसने सारी रातें
महखानो में बिताई हो

गिर्राज माहेश्वरी

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16 MAR 2021 AT 1:33






गिर्राज माहेश्वरी

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10 JAN 2021 AT 20:07

कभी कभी खामोशी वाली
सुबह उम्मीदें खत्म कर देती है।

गिर्राज माहेश्वरी

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