30 JAN 2019 AT 12:56

ऐ वाइज़-ए-नादान करता है तू एक क़यामत का चर्चा
यहाँ रोज़ निगाहें मिलती हैं यहाँ रोज़ क़यामत होती है
-Saba Afghani

- गिरीश