Girish Pandey   (गिरीश)
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खामोश हूँ पर शांत नहीं...
Joined 26 December 2018


खामोश हूँ पर शांत नहीं...
Joined 26 December 2018
3 MAY AT 1:33

मुझे बचपन से लगता था कि
जब भी दुनिया खत्म होगी
समंदर उलट कर बस्ती में आएगा
आंधियां उठेंगी, दरख़्त जमींदोज होंगे
इमारतें सारी मलबे में बदल जाएंगी
कोई वबा होगा या ज़लज़ला होगा
आलम यूं होगा कि लोग मारे जाएंगे

मैं गवाह हूं कि ऐसा तो कुछ भी नहीं हुआ
बस रात भर रोया, सुबह दफ्तर की जानिब
भूख बिल्कुल नहीं थी,सिगरेट एक दो ज्यादा
चाय पड़े पड़े ठंडी हो गई पर काम मुकम्मल
मरने की बात तो छोड़ो, ख्याल भी नहीं था
उल्टे कोई आ मिले तो मुस्कुरा के मिलते थे
अजी हां, दुनिया खत्म हो जाए तो भी मुस्कुराते हैं

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15 APR AT 10:11

मैने हमेशा नकारा है,
मैं अच्छा इंसान हूं
बतौर इंसान शायद,
मैं बहुत अच्छा हूँ
बात जब मैं पर आए तो
तुम्हारा भगवान मुझसे बचाए।

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12 APR AT 18:08

मुखबिर कहते है कि वो मुझे छोड़ कर दुःखी है
मुझे कभी दिखा नहीं मगर
उसका ये दुःख उसे महान बना देता है
बिल्कुल सम्राट अशोक की तरह
जैसे कलिंग के बाद उसने कभी नहीं कहा
पर मुखबिरों ने लिखा सम्राट दुःखी था ।

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30 MAR AT 10:01

कातिल हैं शिकायतों की दिल ए सज्जाद की खामोशी
कितना कुछ कहती हैं "सब ठिक" के बाद की खामोशी

सज्जाद:ईश्वर में अत्यधिक भरोसा रखने वाला।

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23 MAR AT 1:45

एक दफा हाथ मिलाया तो,कस के भींच ली मुट्ठी
ऐसा लगा जिंदगी में क्या कुछ न खोया होगा।

महफिल में बहुत हंसाता है वो शख्स
तन्हाई में जरूर बहुत रोया होगा।

छोटी और सहमी सी हैं आंखें उसकी
कुछ मुकम्मल तो नहीं दिखता
पर बहुत ख्वाब संजोया होगा।

क्यों बिना बात जगाते हो उसको
शाम से उलझा सा था
न जाने रात कब सोया होगा।

सब कहते हैं कि पागल है वो शख्स
शायद वक्त पर हर किसी का हुआ होगा।

छोड़ो तुम भी किसकी कहानी में उलझे हो
वो शख्स जिसे कल मरना था
बहुत हुआ होगा तो आज मर गया होगा।

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11 MAR AT 10:25

सुनो जौन...

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11 MAR AT 10:09

बकौल उनके मैं रिश्ता खराब कर गया
दरअसल,इस अफसाने में बर्बाद रह गया
हुआ अरसा वो दूर जाके प्रयागराज हुए होंगे
मैं वहीं पड़े पड़े अबतक इलाहाबाद रह गया।

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4 MAR AT 0:29

जिंदगीनामा

जहां को उम्मीद कि बोलूंगा मैं उनकी ही जबां
इन्सान हूँ कम्बख्तों,परिंदा नजर आता हूँ?

किराए की छत ढूँढने को भटका हूँ यहाँ दर-दर
शहर वालों को मैं यहीं का बाशिंदा नजर आता हूँ

यारी एक तरफा ही निभाई पूरी शिद्दत से
खुद से की बेवफाई पे शर्मिंदा नजर आता हूँ

बडी है लाचारी और है सवाल रोजी रोटी का
वर्ना मैं दफ्तर के कपड़ो में साजिंदा नजर आता हूँ

कल पुर्जे जिस्म के,बस समेट रखा है जैसे तैसे
एक मुस्कुराहट लगा कर के जिंदा नजर आता हूँ।

-गिरीश
साजिंदा:बाजा बजाने वाला
परिंदा:चिड़िया(यहाँ तोता समझें)

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4 MAR AT 0:25

मेरी हसरतें नहीं की तुम्हें जिस्म से हासिल करूँ मैं
मुझे बस बंदिशे नामंजूर हैं दरमियान हमारे
हो जब तुम सामने तुमसे लिपट कर रो सकूँ मैं
या खुश होकर के तेरे माथे पर बोसा करूँ मैं
या जब तुम रूठ कर के दूर मुझसे जाना चाहो
तुम्हारा दूर जाना रोक दूँ पकड कर हाथ तुम्हारे

हो वो चाहे बंदिश तुम्हारे पास आने की
या घड़ी पर 6 बजे फिर तेरे लौट जाने की
या इस संकोच में कहीं हदें न पार हो जाए
मैं तुमसे दूर होता हूँ होके हमबिस्तर तुम्हारे

मुझे है ख्वाब मुकम्मल करना ,तुम्हें आगोश भर कर
सारी रात तुझसे गीत,नज्में और गजल की बातें करूँ मैं
तुम्हारी आँख झपने लगे सहर तक जब,
तुम्हारे लब की सब लडखडाहट सुन सकूँ मैं
लिए आगोश में ही ख्वाब देखूँ ,
हकीकत फिर जिसे करना मुझे संग तुम्हारे

मैं जब जब कहा की तुम हो सबकुछ मेरी
न मेरा मतलब सिर्फ मेरी आशिकी तक था
मैने खुदा और इबादत तक में पाया था तुम्हें
लेकर क्या करूँगा मैं फिर जिस्म के करें तुम्हारे


मेरी हसरतें नहीं की तुम्हें जिस्म से हासिल करूँ मैं
मुझे बस बंदिशे नामंजूर हैं दरमियान हमारे

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21 FEB AT 21:48

दिवार पर पुराने कपड़े टंगे हुए है
ऊपर कोने में जाले जमें हुए है

आलमारी पर कुछ किताबें है तीतर बितर
और जमीं पर कुछ ख्वाब गिरे हैं इधर उधर

नोटबुक पर एक अधपकी शायरी लिखी है
उसी मेज पर धूल से सनी डायरी पड़ी है

सार्त्र की एक निबंध है "मृत्यु की संभावना"
जिसने घेर रखा है मेरे बिस्तर का एक कोना

मेरे तकिए पर मेरे आदतों की सिलवटे पड़ी हैं
मेरे चादर पर गिरी चाय की छपावटे पडी है

रसोई की ओर माचिस की तिली गिरी है
स्टोव पर कल की झूठी केतली धरी है

सोचता हूँ, इस बंजर में कोई पौधा लगा दूँ
बकौल लापरवाही,ठंडे बसते में ये मसौदा लगा दूँ

मेरे कमरे में और मेरी जिंदगी में कुछ भी खास नहीं है
मगर जितनी ये कविता उदास है,जिंदगी उदास नहीं है।

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