Girish Pandey   (गिरीश)
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Advocate,Theic&Mess
Joined 26 December 2018


Advocate,Theic&Mess
Joined 26 December 2018
8 SEP AT 1:08

कभी कभी लगता हैं कि
सब मूंद लेंगे आंख अपनी अपनी बारी से ¹
फिर कभी लगता है कि ये नींद टूटेगी इकरोज
जब आवाज आएगी कि
इस कहानी के सभी पात्र काल्पनिक थे ²
काल के अट्टहास से यदि मैं भयंकित हुआ तो³
सजा में मांगूंगा सहभागिता उस ईश्वर कि
जिसने मुझे वहां भेजा जहां वो न था ⁴
नेपथ्य के उस आवाज की
जो पहुंची मुझतल देर से ⁵
उस प्रेमिका कि जिसने
नेपथ्य के उस आवाज को
मुझ तक आने दिया ⁶
और
स्वयं उस काल की जिसने
मुझे पिछली बार ग्रसा होगा
बिल्कुल इसी तरह और अधूरा...⁷

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6 SEP AT 3:43

तुम्हारे जानिब देखकर,कोई अशआर लिखूं
मैं तुम्हारे वास्ते सारी दुनिया का प्यार लिखूं
तुम्हारे आंख के काजल से रात अमावस के रंग दूं
तुम्हारे नाम के बदले मैं चौदहवीं का चांद लिखूं
क्या है हम क्या हो तुम न तुम जानो न हम जाने
मगर जब भी तुम्हे लिखता तो अपना परिवार लिखूं

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5 SEP AT 11:50

Favouring the guilty: Defence Lawyer's Dharma

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4 SEP AT 0:48

मुझे ख्वाहिशों के दीमक ने
पहले ही चट कर लिया था
मैं हकीकत की छीटों से
अब खुद को खाए जा रहा हूँ।

मुझे भीड़ और शोरगुल से
खासा तकलीफ़ रहा है
और मैं हूँ कि बस्ती में ही
घर बनाए जा रहा हूँ।

दिल ए नाकाम लेके भी मैं
कितना अजीब अड़ियल हूँ
जी भर गया है जिंदगी से,
तो भी दिल लगाए जा रहा हूँ।

बन जाऊंगा जल्द ही
जज्बातों का कब्रगाह
इतनी बातें जो जेहन में
मैं दबाए जा रहा हूँ।

ये कौन सी वबा है, वबा: pandemic
ये कैसे है अलामात अलामात: symptoms
ये क्या है मजबूरी,
मुस्कुराए जा रहा हूँ ।

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27 AUG AT 1:51

बहुत भारी पड़ेगी मुझपे ये खुशमिजाजी मेरी
हंसते हंसते ही सही आंखों के तटबंध न टूट जाएं...

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16 AUG AT 2:23

मैं अपनी आदतों से आखिर बाज आने से रहा
जेब कितना भी खाली रहे हाथ फैलाने से रहा
माना कि जाम ओ तल्ख कि आदत नहीं हमें
फिर भी इतनी सी शराब से,मैं तो लड़खड़ाने से रहा
मेरे मोहब्बत कि मिशाल संगमरमर से तो गढ़ी नहीं
उससे बिछड़ गया अगर,कोई नज़्म गुनगुनाने से रहा
तुम चाहते हो कि मैं सुलह कर लूं अपने हालातों से
अब शेर भूखा मर भी जाए मगर घास तो खाने से रहा

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9 AUG AT 11:45

अना की दौड़ होती तो थम जाते अबतक
सवाल सलाहियत का है
गिरे भी तो मंजिल की ही ओर रेंगेगे।

अना: Ego
सलाहियत: competence

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2 AUG AT 13:15

जिन कोशिशों में मुंह की खायी
उन कोशिशों के गवाह हैं
ये मेरे आंखों के नीचे गड्ढे
मेरे ख्वाबों के कब्रगाह हैं।

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11 JUL AT 15:28

एक लोटा जल उड़ेलो
एक चुटकी भस्म
एक रख दो बेल की पत्ती
बाबा मेरे मस्त

एक छटाक दूध की धारा
देशी घी एक बूंद
चाहे वो ना हो तो भी
बैठो आँखें मूंद

बेला का गर इत्र लगा दो
और लगा दो चंदन
या बस खींच कर सांसे
दो पंचाक्षर का स्पंदन

एक भंग का गोला रख दो
और एक धतूर
पटक दो माथा उसके द्वारे
सारी विपदा दूर

चाहो तो निज शीश काट के
शंभू को चढ़ा दो
या बस शिव-शिव,शिव-शिव रट के
सारी दुनिया पा लो

शून्य से अनंत,एक से अगणित
जहां कहीं जाओगे
भुजंग लपेटे बैठे होंगे
देख अगर पाओगे

चाहे कर्म कांड से पूजो
या बैजू के भांति
भोला तो बस भाव देखता
ना कुल और ना ही जाति।

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2 JUL AT 1:39

लड़कपन के डरावने किस्से में थी जो
घनी अंधेरी रात और भटकती आत्मा
अब वो रात रंग ए सुकूं स्याह दिखती है
और वो रूह बंदिशों के परे आजाद

आखिर बदला क्या?
यही कि हकीकत,किस्सों से अधिक डरावना है।

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