Girish Pandey   (गिरीश)
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Joined 26 December 2018


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2 JUL AT 1:39

लड़कपन के डरावने किस्से में थी जो
घनी अंधेरी रात और भटकती आत्मा
अब वो रात रंग ए सुकूं स्याह दिखती है
और वो रूह बंदिशों के परे आजाद

आखिर बदला क्या?
यही कि हकीकत,किस्सों से अधिक डरावना है।

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1 JUL AT 20:19

मुझसे तो तेरा दामन छूटने से रहा
तुम्ही मुँह मोड़ लो,शायद करार पाऊं
अबकी तो तुमको शायद पाने से रहे हम
अगली दफा हो शायद तेरा विसाल पाऊं
मैं आसमां के ओर देखता हूं यूं कुछ
काश ऐसा हो कि पत्थर उछाल पाऊं
खैर जो दर्ज लकीरों में वहीं मिलेगा तुमको
वगरना औकात थी क्या मेरी,इतने ग़म संभाल पाऊं।

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27 JUN AT 0:06

लहरें रुक नहीं पाएंगी,किनारा साथ बैठेगा
दुनिया जानी हो जाएगी सहारा साथ बैठेगा
हम बरबाद हैं बहुत मगर कुछ लोग हैं अपने
उसे जाने की है जल्दी लेकिन बेचारा साथ बैठेगा
कभी मुकद्दर नहीं बैठी कभी तो मन ही नहीं मिला
जाने यूं होगा कि न होगा कि हमारा साथ बैठेगा

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26 JUN AT 23:53

सब मुझ पर हंसेंगे
और मैं भी हसूंगा
कि जिंदगी,ये क्या मजाक है?

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25 JUN AT 23:33

भटक कर जिंदगी के किसी दोराहे पे हूं
ये जिस्म नहीं मजार है और किराए पे हूं।
बरसात में छत टपके है,कुछ कर नहीं पाता
मालिक न मुख्तार,किराएदार हूँ, किराए पे हूं।
शहर में लगा था जलसा,शहरी हुए शरीक
बाशिंदों की खुशी वाजिब,मुझे क्या,किराए पे हूं।
मैं क्या जानू कौन है किस जात धरम का
मैं तो सबके खातिर बेगाना और किराए पे हूं।
रोना भी पड़ता हैं सुबक कर फूटकर नहीं
दीवारों के कान का लिहाज़ करूं, किराए पे हूँ ।
तुमको कभी देखा नहीं कहता हैं ये क़ासिद(postman)
नहीं,मेरा घर नहीं,मैं तो बस रहता हूं, किराए पे हूँ।

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18 JUN AT 1:10

दिल अब उदास नहीं उजड़ गया है
मैं भले शांत बैठा हूं,खून का फिशार बढ़ गया है।
तुम्हें पसंद था वो शख्स जो कभी मुझमें रहता था
मैं अब लाख बुलाऊं नहीं सुनता, शायद मर गया है।
किसे मालूम कब ढह जाऊंगा मैं मुस्कुराते मुस्कुराते
कौन देखे ये मुस्कुराहट है या चेहरे पे दरार पड़ गया है।
कौन यहां दिए जलाएगा किससे है मतलब
सिर्फ जुगनू पर अंधेरों से लड़ने का भार पड़ गया है।
वो दौर,वो दोस्ती और वो महफिलों के रंग
उठो,अब जाग जाओ वो दौर गुजर गया है।
और चलो कैद कर दो मुझे दुनियावी सलाखों में
मैं गलत नहीं बस अलग था,इसका गवाह मुकर गया है।
दिल अब उदास नहीं... उजड़ गया है

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18 JUN AT 0:58

जिंदगी मेरे ख्वाबों को सरेआम तोड़ देती है
सुबह को हौसला गढ़ता हूँ,शाम तोड़ देती है।
अपने आप से वैसे ही मैं कुछ हताश रहता हूं
मेरी कोशिशों को ये लकीरें नाकाम तोड़ देती है।
दो चार पाई जोड़ पाता हूँ मैं शौक के नाम
मेरा सारा हिसाब आटा दाल के दाम तोड़ देती हैं।

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15 JUN AT 1:25

मुझे ख्वाहिशों के दीमक ने
पहले ही चट कर लिया था
मैं हकीकत की छीटों से
अब खुद को खाए जा रहा हूँ।

मुझे भीड़ और शोरगुल से
खासा तकलीफ़ रहा है
और मैं हूँ कि बस्ती में ही
घर बनाए जा रहा हूँ।

दिल ए नाकाम लेके भी मैं
कितना अजीब अड़ियल हूँ
जी भर गया है जिंदगी से,
तो भी दिल लगाए जा रहा हूँ।

बन जाऊंगा जल्द ही
जज्बातों का कब्रगाह
इतनी बातें जो जेहन में
मैं दबाए जा रहा हूँ।

ये कौन सी वबा है, वबा: pandemic
ये कैसे है अलामात अलामात: symptoms
ये क्या है मजबूरी,
मुस्कुराए जा रहा हूँ ।

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10 JUN AT 13:25

जो भी हासिल है,सिर आंखों पर
अब हिसाब किताब क्या मांगू
मैं अपने हिस्से के सूने आसमान पर
अब भला आफताब क्या मांगू
मैं मांग लेता एक शख्स इस सारे जहां से लेकिन
जो उसे ही मंजूर नहीं तो उसके ख़िलाफ़ क्या मांगू ।

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31 MAY AT 22:51

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