मर्दानगी का ऐसा भूत चढ़ा था तुझे
पचकाने लगने लगे दोस्ती के माईने तुझे,
के, मर्दानगी का ऐसा भूत चढ़ा था तुझे
पचकाने लगने लगे दोस्ती के माईने तुझे,
और सिखाने चला दोस्ती तू मुझे
तुमने बस नाम का माना था,
दिल से दोस्त मैंने माना था तुझे ।
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उनके होने से रोटी, कपड़ा, मकान है,
उनके होने से मां के सर पे सुहगा है,
उनके लिए मेरे सपने अपने है,
उनके होने से मुश्किल भी लगते बुलबुले है,
उनके होते हुए उड़ान होगी कभी मा धीमे है,
उनके होने से सारे खिलौने अपने है,
उनके होने से आराम ज़िन्दगी में भरपूर है,
उनके होने से भरे सभा में मेरा अस्तित्व है,
वो ना हो तोह ज़िन्दगी का आधा अर्थ ख़तम है ।-
गौर फरमाना,
के नफरत भरा यह देश है,
चालबाज़ भरा वेष है,
कुछ लोग ऐसे भी रहते है
तुम्हे अच्छी कहते हैं,
पीठ पीछे गंध बोलते हैं।-
बांटते और काटते रंग के आधार पे,
संविधान बचाने वाला कोई ना यहां पे,
मर रही हैं माएं बच्चों के सामने,
आठ लोग मार रहे कन्या यहां पे,
लफ्ज़ तक ना निकली बुजदिलों के ज़ुबान से,
घर बैठ लिख रहे बुराई इनके राज में,
हम हैं जो जूंझ रहे लकड़ियों के वार से,
दिख रही है मौत हमें सामने चिंघाड़ते,
निर्दोष के जिस्म में ये गोलियां हैं दाग रे,
इंसाफ भी यहां पर बिकती दिखती सामने,
दोष बस इतना हैं खुदा ने ज़्यादा सेका हैं,
देश को हवाले हमने जिसके किया हैं,
भक्षकों की टोली को रक्षक उसने बनाया है,
हम पीड़ितों को उसने अपना बस मौन दिखाया है।-
मैं,
ज्ञान हूं
कोरे कागज़ पे छपे अंक से,
तुम्हारे उम्र के अंक से,
बालों पे छाई सफेदी से,
तुम्हारे उजड़े चमन से,
तुम्हारे ऊंचे ऑडे से,
और, अनेक प्रमाणपत्र से,
यह,
मेरा मापदंड नहीं,
तुम्हारे किए गए कर्म से,
तुम्हारे विवेक के उपयोग से,
किए गए परोपकार से,
मनोभाव के संयम से,
तुम्हारे दर्शाए गए संस्कार से,
मेरी पूर्ण परिभाषा है।-
ना ज़्यादा कमाने से,
ना ज़्यादा दिखावे से,
तुम्हारी कामयाबी झलकती है,
दूसरों के प्रति परोपकार से।
ना नीचा दिखाने से,
ना अनगिनत पुरस्कार से,
तुम्हारी कीमत दिखती है,
तुम्हारे अपनों के बलिदान से।
ना कमजोर का मज़ाक बनाने से,
ना कामयाब को भगवान बनाने से,
तुम्हारी विवेक उभरती है,
उनके कर्मों का सम्मान करने से।
ना ज़्यादा अंकों से,
ना ज़्यादा उपाधियों से,
ना ऊंचे विद्यालय से,
ना बैंक बैलेंस से,
तुम्हारी मति झलकती है,
तुम्हरे ज्ञान का से।-
मानते है हाथ हमने बढ़ाया था,
मै खुश रहूं इसलिए मान भी लिया था,
कुछ तोह आपको भी महसूस हुआ होगा,
इसलिए अबतक संभाला होगा,
फिर ऐसा क्या गुनाह कर दिया हमने,
जो आपने हमें अटका दिया,
पूछने पर तोह अनजान ने भी रास्ता बता दिया,
फिर क्यों अपने होकर भी आपने हमें भटका दिया।-
Jiski aradhna hoti khud swarg mein,
Kya hi janoge us maa ke baare mein.
Sansaar ko chalati jiski Mamta hai,
Ek din hi hoti bhedon ko unki parwah hai,
Aisa apmanjanak ehsaan dekh,
Ishwar ka rooh bhi ro padta hai.
364 din hai jinhe hum koste,
Thaal me jab humare Ann kam pade,
Khudki bhookh marr veh,
Chehre pe hasi lekar humara pet bharte.
Magar, bas ek hi din,
Hai hum unhe samman dete,
Jhoothi ho ya sacchi shaan hai maante,
Baaki din bas ek ehsaan hai jatate.-
धर्तिवासी सारे अधर्मी,
बुरा करे कोई अन्य ही व्यक्ति,
भोगे मगर पूरी मानव प्रजाति,
कष्ट है सेहती महिला जाती,
ईश्वर से है प्रश्न यह पूछती,
कब मिलेगी हमे इज्जत हमारी।
कहता समाज,
कोई ना वहां निर्दोषी है,
क्यूं, पूरी पुरुष प्रजाति दोषी है,
करते हैं जो घृणित काम,
गिने चुने हैं उनके नाम,
फिर क्यूं हो करते, हर पुरुष को बदनाम।
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