Giriraj Sambhariya   (YQG!r!)
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Born to No. 1
Joined 9 March 2019


Born to No. 1
Joined 9 March 2019
30 APR AT 18:30

फुर्सत में याद करना हो तो मत करना...
हम तन्हा जरूर है पर फिजूल नहीं..

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4 AUG 2024 AT 9:51

तप्त हृदय को, सरस स्नेह से ,
जो सहला दे, मित्र वही है।

रूखे मन को, सराबोर कर,
जो नहला दे, मित्र वही है।

प्रिय वियोग, संतप्त चित्त को,
जो बहला दे, मित्र वही है।

अश्रु बूँद की, एक झलक से ,
जो दहला दे , मित्र वही है।

-- मैथलीशरण गुप्त

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4 SEP 2023 AT 6:53

चार मिले चौसठ खिले,,,--बीस रहे कर जोड़!!
प्रेमी प्रेमी दो मिले,,,,--खिल गए सात करोड़ !!!!
🖤🖤🖤🖤🖤

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23 JAN 2023 AT 14:25

तेरी बेवफाई के अंगारों में लिपटी रही है रूह मेरी l
मैं इस तरह आग ना होता जो हो जाती तू मेरी l
तुम ने पकड़ा हाथ किसी और का और तुम चल पड़ी l
दुनिया तुम्हें हंसी लगी और तुम निकल पड़ी l
धोखा तुमने दिया है तो तुमको भी मिलेगा l
जैसा बीज बोओगे वही मिलेगाl
दुनिया की रिबायत है चलती रहती है l
जवानी का क्या है ढलती रहती हैl
आज मुझे हराकर तुम जाओगी l
पर मेरा दावा है बुढ़ापे तक जिंदगी भर मेरे गीत गाओगी l

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31 DEC 2022 AT 23:16

ये नव वर्ष हमे स्वीकार नहीं,है अपना ये त्यौहार नहीं
है अपनी ये तो रीत नहीं,है अपना ये व्यवहार नहीं
धरा ठिठुरती है सर्दी से,आकाश में कोहरा गहरा है
बाग़ बाज़ारों की सरहद पर,सर्द हवा का पहरा है
सूना है प्रकृति का आँगन,कुछ रंग नहीं , उमंग नहीं
हर कोई है घर में दुबका हुआ,नव वर्ष का ये कोई ढंग नहीं
चंद मास अभी इंतज़ार करो,निज मन में तनिक विचार करो
नये साल नया कुछ हो तो सही,क्यों नक़ल में सारी अक्ल बही
उल्लास मंद है जन -मन का,आयी है अभी बहार नहीं
ये नव वर्ष हमे स्वीकार नहीं,है अपना ये त्यौहार नहीं
ये धुंध कुहासा छंटने दो,रातों का राज्य सिमटने दो
प्रकृति का रूप निखरने दो,फागुन का रंग बिखरने दो
प्रकृति दुल्हन का रूप धार,जब स्नेह – सुधा बरसायेगी
शस्य – श्यामला धरती माता,घर -घर खुशहाली लायेगी
तब चैत्र शुक्ल की प्रथम तिथि,नव वर्ष मनाया जायेगा
आर्यावर्त की पुण्य भूमि पर,जय गान सुनाया जायेगा
युक्ति – प्रमाण से स्वयंसिद्ध,नव वर्ष हमारा हो प्रसिद्ध
आर्यों की कीर्ति सदा -सदा,नव वर्ष चैत्र शुक्ल प्रतिपदा
अनमोल विरासत के धनिकों को,चाहिये कोई उधार नहीं
ये नव वर्ष हमे स्वीकार नहीं,है अपना ये त्यौहार नहीं
है अपनी ये तो रीत नहीं,है अपना ये त्यौहार नहीं

✍🏻राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर

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29 OCT 2022 AT 9:13

मैं हमदर्दी की खेरातों के सिक्के मोड़ देता हूँ।
मैं जिस पर बोझ बन जाऊं, उसे खुद ही छोड़ देता हूं।।

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26 SEP 2021 AT 19:36

तुम चांद देखने की जिद करना,
मैं तुम्हे आईना दिखा दूंगा..........
❣️❣️❣️❣️❣️❣️❣️❣️

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11 AUG 2021 AT 12:41

जंगल जंगल ढूंढ रहा है मृग अपनी कस्तूरी..
कितना मुश्किल है तय करना खुद से खुद की दूरी।।
भीतर शून्य बाहर शून्य, शून्य चारो ओर है..
मैं नही हूँ मुझमे, फिर भी मैं मैं का शोर है।।

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7 FEB 2021 AT 14:20

कुछ बातें हम से सुना करो,
कुछ बाते हम से किया करो।

मुझे दिल की बात बता दो तुम,
होंठ ना अपने सिया करो।

जो बात लबो तक ना आये,
वो आंखों से कह दिया करो।

कुछ बाते कहना मुश्किल है,
तुम चेहरे पर पढ़ लिया करो।

जब तन्हा तन्हा होते हो,
आवाज मुझे तुम दिया करो।

हर धड़कन मेरे नाम करो,
हर सांस मुझे तुम दिया करो।

जो खुशियां तेरी चाहत है,
मेरे दामन से चुन लिया करो।

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8 DEC 2020 AT 19:37

गर्दिश-ए-हालात का सितम कुछ यूँ समझ लीजै,
आग लगी है घर में, आंधियों के मौसम में...!!
तेरी बाहें नहीं बस तेरी यादें ही हैं रोने को,
ये "बरसात" रुकती ही नहीं सर्दियों के मौसम में...!!
यूँ तो कोई आया नहीं हमसे हाल पूँछने,
सारे "दोस्त"आयेंगे अभी ज़रूरतों के मौसम में...!!
आंसुओं कुछ पल तो रुको वो रूबरू है अभी,
रोना अच्छा नहीं होता त्योहारों के मौसम में...!!🙄🙏

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