ग़ज़ल (१२२ १२२ १२२ १२)
""""""""""""""""
तुम आये फिज़ायें...... नशीली हुई
अकड़ ग़म की थोड़ी-सी ढीली हुई
नफ़स-दर-नफ़स लुत्फ़ बढ़ने लगा
जो धुन धड़कनों की... सुरीली हुई
खिले हम गुलों-से......महकने लगे
खुशी जो मिली.... आँख गीली हुई
पिया की नज़र ने.. मुझे जब चखा
भरी मैं रसों से.......... रसीली हुई
मोहब्बत गई चुभ ज़माने को फिर
कहो ये.... किधर से नुकीली हुई?
©Ghumnam Gautam
- Colorless rainbow