ग़म इकट्ठा करने की
अपनी आदत हो चली है
मौत जगने लगी है मुझमें
ज़िंदगी थक के सो चली है
हर मौसम तेरी याद का चोला
पहन चिढ़ाने आता है
दिन ज़ालिम कोई गिद्ध है
मेरी लाश को खाने आता है
अश्क़ का दरिया आँखें हो गईं
दिल में लग गयी आग
गुज़रा वक़्त डसे है हरपल
बनके विषधर नाग
©Ghumnam Gautam
- Colorless rainbow